Loksabha elections 2024:लोकसभा चुनाव पर indtalknews.com का ख़ास सीरीज में आज के इस पहले भाग में हम बात करने जा रहे हैं व्यापारी वर्ग की जिसे नरेंद्र मोदी के सरकार ग़लत नीतियों ने पुरी तरह से तबाह कर दिया।
देश में एक बार फिर से लोकसभा चुनाव का शोर है ऐसे हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले 10 सालों का आंकलन करेंगे । जिसमें नरेंद्र मोदी सरकार के दावो में कितना दम ये सरकार क्या वकई अपने वादे खड़ी उतरी या फिर नहीं नहीं। इस सरकार के संपूर्ण रिपोर्ट कार्ड आपके सामने प्रस्तुत करेंगे इसी करी में आज नवरात्रि के पहले दिन ही ये जानते हैं कि नरेंद्र मोदी के सरकार ने कैसे व्यापारी वर्ग को निराश कर दिया। वैसे व्यापारी वर्ग ने नरेंद्र मोदी सरकार से काफी उम्मीदें किए थे जब 2014 में देश में लोकसभा चुनाव हो रहा है।
मोदीजी के आने के बाद अच्छे दिन नहीं बुरे दिन आ गये
लेकिन जब 2014 में मोदी सरकार आई तो ये कह आई थी कि अच्छे दिन आने वाले हैं परंतु किसे पता था कि इस देश के व्यापारी वर्ग के लिए आगे बुरे दिन आ जाएंगे। आज इस देश के छोटे व्यापारी वर्ग कर्ज के दलगत में इस क़दर फंस गई उसे निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा है। वैसे आपको बता दें कि व्यापारी वर्ग जो कि परांगत तौर पर नरेंद्र मोदी के पार्टी बीजेपी के कौर वोटर रहे हैं लेकिन वहीं वोटर अब नाराज़ चल रहे है।

सरकार ग़लत नीतियों कीमत चुका रहा व्यापारी
Ncrb (National Crime Records Bureau) के ताजा डाटा को मानें तो पिछले पांच सालों में इस देश में किसानों से अधिक व्यापारी वर्ग ने आत्महत्या करने के लिए मजबुर हुए। इससे आप समझ सकते हैं कि इस देश के व्यापारियों वर्ग इस समय कैसे हालातों से गुजर रहें हैं। आखिर कैसे व्यापारियों के हालात इतने दयनीय हो गये कि वो आज आत्महत्या करने के लिए मजबुर हो गये। इसकी बड़ी वजह है कि व्यापारी वर्ग कर्ज़ के बोझ तले दबे हैं।
जिंदगी में चुनौती आती हैं लेकिन कभी हारे नहीं
यहां स्पष्ट करना चाहते हैं कि जिंदगी में परेशानी और चुनौती जरूर आती लेकिन उसके सामने कभी हारे नहीं बल्कि उस कठिन वक्त से निकलने का प्रयास करे, ऐसी कोई समस्या जिसका सामधान नहीं है इसलिए सकारात्मक सोच रखिए और मन में कभी गलती से भी आत्महत्या जैसे ख्याल ना लाएं बल्कि बुरे वक्त हर किसी जिंदगी में आता, और उससे लड़ने के प्रयास करिए।
NCRB के तरफ़ से रिपोर्ट व्यापारियों के आत्महत्या के प्रमुख कारण
ख़ैर एक बार फिर से हम आगे बढ़ते हैं,NCRb की तरफ़ से व्यापारी के आत्महत्या के जो प्रमुख कारण उसे मानें तो व्यापारियों को दिवालिया होना और कर्ज का बोझ वो कारण जिस वज़ह से ज्यादातर व्यापारीयों आत्महत्या के लिए मजबुर होते हैं और एक आंकड़ा को माने तो व्यापारी वर्ग ज्यादातर कर्ज खुलें मार्केट से लेते हैं इस कारण से भी व्यापारी पर कर्ज लौटाने का दवाब कहीं ज्यादा होता क्योंकि वो कर्ज मार्केट अर्थात किसी साहुकारों से लेते हैं इस कारण से धीरे-धीरे कर्जों के बोझ में इस क़दर दब जाते हैं कि वो इस से बाहर नहीं निकल पाते हैं , बीजेपी इस समय इस देश के जमीनी हकीकत से शाय़द दुर हो चुकी है।
वर्तमान में ज्यादातर न्यूज़ चैनल आपको हकीकत दुर रख रहीं है आपको बस सत्ता पक्ष की प्रसन्नता करते नज़र आ रहीं हैं, लेकिन वर्तमान में इस देश के जो जमीनी हकीकत वो कहीं ज्यादा बुरे परिस्थिति से गुजर रहा है क्योंकि इस देश अर्थव्यवस्था प्रमुख भुमिका निभारने वाले व्यापारी वर्ग ही परेशान चल रहा है। जो छोटे व्यापारी भारत के विकास रीढ़ हट्टी कहा जाता आज वहीं व्यापारी कर्ज दलगत फंस गई उसे निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। मोदी सरकार के ग़लत नीतियों कारण ही आज छोटे व्यापारियों के इतने बुरे दिन के जिम्मेदार है,लेकिन उस पहले NCRB की पिछले पांच सालों के डाटा आपको बताते हैं ।
वर्ष | व्यापारी | किसान |
2015 | 8,780 | 12,602 |
2016 | 8,573 | 11,379 |
2017. | 7,778 | 10,655 |
2018 | 7,990 | 10,349 |
2019 | 9,052 | 10,281 |
2020 | 11,716 | 10,677 |
2021 | 12,055 | 10,881 |
ये सभी डाटा सरकार के एजेंसी NCRB का यानी इस बात का 100 प्रतिशत गारंटी है कि ये डाटा पुरी तरह से सत्य है इसके साथ आपको ये भी बता दें कि 2020 और 2021 में व्यापारियों के आत्महत्या मामले सबसे ज्यादा सामने आया था। और उस दौर में इस देश में कोविड 19 कारण लॉकडाउन लगा था इस बात से आप समझ सकते हैं कि लॉकडाउन का नकारात्मक प्रभाव किस प्रकार से व्यापारियों पड़ा था। कोरोना काल में लॉकडाउन उचित था लेकिन उस समय फैसले लेने से पहले सरकार ने व्यापारियों के परिस्थितियों को भी समझना चाहिए क्योंकि व्यापारियों के एक बड़ा वर्ग खुलें मार्केट से कर्ज लेता है और साहुकारों के कर्जे जाल में इस क़दर फंस गया कि जिससे निकलना व्यापारी के लिए आसान नहीं था। व्यापारीयों के बुरे दिन के लिए मोदी सरकार के कुछ ग़लत नीतियों भी जिम्मेदार थी।

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मोदी सरकार के ग़लत नीतियां व्यापारीयों को चौपट कर दिया
असल में मोदी सरकार ने कुछ ऐसे क्रांतिकारी फैसला लिए जिसका लाभ था लेकिन उसके दुष्परिणाम भी इस देश के अर्थव्यवस्था चुकाना पड़ा जैसे कि नोटबंदी का फैसला जिसका प्रभाव व्यापार पड़ा और उसका नुकसान इस वर्ग चुकाना पड़ा इसके बाद व्यापार स्थिति सुधर ही रहीं तभी देश में जीएसटी लागू कर दिया गया ।जिसका प्रभाव भी व्यापार अच्छा नहीं पड़ा लेकिन हम ये भी कहना चाहतें हैं कि जीएसटी का फैसला उचित था लेकिन जिस प्रकार से ये कहा गया था कि जीएसटी का मतलब एक देश एक टैक्स है लेकिन वैसा कुछ नज़र नहीं आया सरकार ने जीएसटी के अंदर ही अलग-अलग स्लैब बना दिया।
जिस कारण से व्यापारी वर्ग में जीएसटी
जिस कारण से व्यापारी वर्ग जीएसटी को समझ नहीं पाए क्योंकि इसके लिए व्यापारियों को अलग से कंप्यूटर ऑपरेटिंग रखने पड़े क्योंकि एक सामान्य व्यापारियों को इस सब कुछ समझ पड़ रहा था तो व्यपारियों ने अलग से जीएसटी के लिए एक कंप्यूटर ऑपरेटिंग रखने पड़े तो उसके लिए व्यापारियों को वेतन देना पड़ा जो कि लगभग 20 से 30 हजार के आसपास था।
छोटे व्यापारियों का कमर टुट गया
इस से छोटे व्यापारियों का कमर टुट गया क्योंकि भला वो कैसे अपने कारोबार आगे बढ़ाए इसलिए जीएसटी लागू होने के बाद से लंबे अरसे तक व्यापार पुरी तरह से मंदी रहा, कई व्यापारी ऐसे भी थे जिनके दुकान काफी छोटा था इस कारण से भी वो अपने दुकान में कंप्यूटर कहा रखते तो आप समझ सकते हैं कि इससे छोटे व्यापारियों को पर कितना बोझ पड़ा। इसलिए जीएसटी लागू होने के लंबे समय ऐसी परिस्थिति रहीं कि व्यापार पुरी तरह से चोपट हो गई थी जब व्यापार फिर से पटरी आ रही थी तभी पुरे विश्व में कोरोना वायरस आ गई जिसके बाद लॉकडाउन इफेक्ट पड़ने लगें उसके बाद एक बार फिर से व्यापार पुरी तरह से चौपट हो गई।
नोटबंदी का फैसला उचित नहीं है
वैसे नोटबंदी का फैसला शाय़द उचित नहीं था क्योंकि क़रीब 99 प्रतिशत पैसे वापस आ चुका था तो इसी समझ सकते हैं कि कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राईक की बात में कितना दम है, शाय़द सच कड़वा है लेकिन जिस कालेधन रोकने के लिए नोटबंदी किया उसका लाभ इस देश को होते नहीं दिखा वहीं नोटबंदी कुछ क्षेत्रों के लिए लाभदायक भी रहा खासकर डिजिटल मनी के क्षेत्र में नोटबंदी का फैसला उचित रहा क्योंकि नोटबंदी के बाद से ही इस देश में डिजिटल इकोनॉमी ग्रो की है लेकिन हम नोटबंदी पर विस्तार से इसी सीरीज के अगले भाग में बात करेंगे।
कैसे बदलेंगे हालात व्यापारियों के
इस समय व्यापारियों हालात बदलने के लिए जरूरी था कि व्यापारियों का कर्जा को माफ कर दिया जाएं। इस से हो सकता है कि सरकार पर एक बड़ा बोझ पड़ जाएं लेकिन ये भी ना भूलें कि छोटे व्यापारी वर्ग इस देश के रीढ़ हट्टी है अगर हम उन्हें आज कर्जे के इस बोझ से निकालेंगे तो कल को यही लोग हमारे देश के अर्थव्यवस्था के रीढ़ बन जाएंगे। लेकिन एक महत्वपूर्ण बात ये है कि इस देश में अधिकतर व्यापारी वर्ग खुलें मार्केट से अर्थात साहुकारों से कर्ज लिए है,भला इससे जुड़ी इनफार्मेशन सरकार कहां से लाएंगी। जब कोई बैंक से कर्ज लेता है तो उसकी पुरी जानकारी सरकार के पास होता है।
EY की एक रिपोर्ट को मानें
EY की एक रिपोर्ट को मानें तो 1,000 छोटे और लघु उद्यमियों (MSME) पर किए गए सर्वे में कोरोना के कारोबार पर पड़े प्रभावों की पूरी तस्वीर सामने आई है उसे मानें तो क़रीब 70 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कोविड -19 महामारी के दौरान कम ऑर्डर, व्यापारिक घाटा, कच्चे माल की उपलब्धता में कमी जैसे तमाम मुद्दों के कारण भारी नुकसान की बात कही। ये EY रिपोर्ट लेकिन इस बात कोई इंकार नहीं कर सकता है कि कोविड दुष्परिणाम इस देश के व्यापारी वर्ग चुकाना पड़ा।
कर्ज माफ़ी या फिर?
अब सरकार इनके लिए कर्ज माफ़ी या फिर कोई और स्कीम लाए तो शायद परिस्थिति बदल सकतीं हैं। जैसे कि कुछ लोगों का मानना है कि जिस तरह से बड़े-बड़े उद्योगपतियों के कर्ज़ माफ किया जा रहा उसी तर्ज पर छोटे व्यापारियों का भी कर्ज माफ़ तो किया ही जा सकता है लेकिन इसके लिए सरकार पास कोई 100 प्रतिशत सटीक डाटा उपलब्ध होना चाहिए जो कि मौजूदा परिस्थितियों में संभव नहीं है। जैसे कि हाल में ही खबर सामने आया जिसमें एक बड़े उद्योगपति Zee ग्रुप के सुभाष चंद्रा पर यस बैंक का 8400 करोड़ कर्ज था। पहले उसमें से 1900 करोड़ माफ़ कर दिया गया। बचा 6500 करोड़ फिर से उसके बाद दूसरे राउंड में 6500 करोड़ का अर्थात 75% कर्ज माफ हो गया। अब सुभाष चंद्रा को केवल 1500 करोड़ बैंक को देना है। जब सुभाष चंद्रा और उनके जैसे कई बड़े उद्योगपति के कर्ज़ को माफ़ किया जा सकता तो फिर इस देश के छोटे व्यापारियों और किसानों का कर्ज क्यों नहीं माफ़ किया जा सकता है।