बिहार या पाकिस्तान? सीमांचल में 70% मुस्लिम आबादी, हिंदू जनसंख्या में गिरावट, देश की सुरक्षा पर सवाल।

Shubhra Sharma
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बिहार के सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया) में जनसांख्यिकी का बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। इन जिलों में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है, जबकि हिंदू आबादी घट रही है। यह बदलाव केवल संख्यात्मक नहीं है, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी गहरी छाप छोड़ रहा है।

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मुस्लिम आबादी में वृद्धि और इतिहास का संदर्भ

1951 में बिहार के इन इलाकों में मुस्लिम आबादी लगभग 24% थी, जो 2011 की जनगणना तक बढ़कर 40% से ज्यादा हो गई। आज कुछ जिलों, खासकर किशनगंज में, मुस्लिम जनसंख्या 70% तक पहुंच गई है। इसकी मुख्य वजह है अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ, नेपाल और पश्चिम बंगाल से सीमा पर आवाजाही, और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति।

इतिहासकारों का मानना है कि 1947 में विभाजन के दौरान बिहार के मुसलमानों ने पाकिस्तान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। पाकिस्तान के सिंध प्रांतीय विधानसभा के सदस्य सैयद एजाज उल हक ने हाल ही में इस बात की पुष्टि की कि बिहार के मुसलमान उस वक्त विभाजन के समर्थक थे।

बिहार की राजनीति और मुस्लिम तुष्टिकरण

बिहार में लालू यादव की पार्टी राजद (RJD) और उनके सहयोगी दल मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए अक्सर ऐसे कदम उठाते हैं, जिन्हें कई लोग हिंदू-विरोधी मानते हैं। हालिया उदाहरण में, राजद के विधायक ने हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ पोस्टर लगाए। इसके अलावा, राजद ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध करते हुए मुसलमानों को भड़काने का काम किया।

तेजस्वी यादव ने यह भी कहा कि अगर जरूरत पड़ी, तो मुसलमानों को दलित का दर्जा देने के लिए संविधान में बदलाव किया जाएगा। इससे हिंदू समुदाय के बीच असुरक्षा की भावना बढ़ी है।

सीमांचल में सामाजिक तनाव और धार्मिक हमले

इन क्षेत्रों में सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं भी बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, दरभंगा और सीमांचल क्षेत्र में सरस्वती पूजा जैसे हिंदू धार्मिक आयोजनों पर हमले की खबरें आम हो चुकी हैं। हाल ही में दरभंगा में प्रतिमा विसर्जन के दौरान मुस्लिम समुदाय द्वारा जुलूस पर हमला किया गया।

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बांग्लादेश का उदाहरण: एक चेतावनी

बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) में विभाजन के समय हिंदुओं की आबादी 22% थी, जो 2022 तक घटकर केवल 7.95% रह गई। यह आंकड़ा दिखाता है कि कैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदू अल्पसंख्यक कमजोर हो जाते हैं। सीमांचल में भी ऐसी स्थिति बनने का खतरा है।

भविष्य के लिए चिंताएं और समाधान की जरूरत

सीमांचल में मुस्लिम आबादी का बढ़ता अनुपात और हिंदुओं का पलायन केवल सामाजिक मुद्दा नहीं है; यह भारत की अखंडता और सांस्कृतिक विविधता के लिए भी चुनौती है। अगर इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो सीमांचल के जिले “बांग्लादेश की राह” पर जा सकते हैं।

सरकार को अवैध घुसपैठियों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए। इसके साथ ही, सभी समुदायों के बीच सौहार्द बढ़ाने और वोट बैंक की राजनीति से बचने की आवश्यकता है।

यह समस्या केवल बिहार की नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए चेतावनी है। समय रहते ठोस नीतियों और सामूहिक प्रयासों से ही इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।

बढ़ती मुस्लिम आबादी पर भाजपा और नीतीश सरकार की निष्क्रियता

बिहार के सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम आबादी में वृद्धि और अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर भाजपा की निष्क्रियता पर सवाल उठ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अक्टूबर 2024 में ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ के माध्यम से हिंदुओं को एकजुट करने का प्रयास किया, लेकिन इस क्षेत्र में भाजपा की ठोस कार्रवाई की कमी स्पष्ट है। सीमांचल के चार जिलों—किशनगंज, अररिया, कटिहार, और पूर्णिया—में मुस्लिम आबादी 40% से 70% के बीच है, जिससे जनसांख्यिकी में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।

भाजपा ने मुस्लिम समुदाय को आकर्षित करने के लिए ‘सूफी संवाद’ जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन अवैध घुसपैठ और जनसांख्यिकीय असंतुलन के मुद्दों पर निर्णायक कदम नहीं उठाए हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार पर भी सीमांचल में बढ़ती मुस्लिम आबादी और अवैध घुसपैठ के प्रति उदासीनता का आरोप है। इस क्षेत्र में हिंदू आबादी में गिरावट और मुस्लिम आबादी में वृद्धि के कारण सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने में बदलाव हो रहा है, जिससे स्थानीय लोग चिंतित हैं।

कुल मिलाकर, सीमांचल में बढ़ती मुस्लिम आबादी और अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर भाजपा और नीतीश कुमार की सरकार की निष्क्रियता की आलोचना हो रही है, जिससे क्षेत्र की सामाजिक संरचना और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ रहा है।

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