Next Bjp president: लोकसभा इलेक्शन परिणाम आएं ढाई महीने बीत चुके हैं लेकिन अब तक भारतीय जनता पार्टी जेपी नड्डा का उत्तराधिकारी नहीं चुन पाई है आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी में परंपरा है कि जब भी भाजपा का अध्यक्ष केंद्र सरकार में मंत्री या किसी दूसरे बड़े ओहदे को संभालता है उसके बाद भारतीय जनता पार्टी एक डेढ़ महीने के अर अपना अध्यक्ष चुन लेती है अध्यक्ष नहीं तो कम से कम कार्यकारी अध्यक्ष जरूर चुन लेती है जिसे अगली कुछ जिम्मेदारियों के निर्वाहन के बाद पूर्णकालिक अध्यक्ष बना दिया जाता है।
लाल किशन आडवाणी मंत्री बनें के बाद
यह परंपरा अध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष चुनने की परंपरा 1998 में लाल कृष्ण आडवानी के गृह मंत्री बनने के बाद भी निभाई गई यह परंपरा 2014 में राजनाथ सिंह के गृह मंत्री बनने के बाद भी निभाई गई इस परंपरा का निर्वाहन 2019 में अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद भी निभाई गई लेकिन इस परंपरा का निर्वाहन 2024 में जेपी नड्डा के नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद अब तक नहीं निभाई गई कारण क्या है क्या नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पार्टी पर पकड़ ढीली हो रही है।
Next Bjp president
क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नरेंद्र मोदी का रिप्लेसमेंट
क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नरेंद्र मोदी का रिप्लेसमेंट चाहता है। क्या भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच नरेंद्र मोदी को लेकर अमित शाह को को लेकर उनकी चाणक्य नीति को लेकर गहरे मतभेद उत्पन्न हो गए हैं आखिर अपने लोगों से ही कैसा डर कि अपनी पार्टी में जिसे विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहते हैं वह लोग भाजपा के लोग अपने ही पार्टी के किसी कार्यकर्ता को अध्यक्ष बनाने के लिए इतनी माथा पच्ची हो रही है।
राजनाथ सिंह के घर पर पांच – पांच घंटे मीटिंग हो रही है और उस मीटिंग में संघ के लोग भाजपा के लोग तमाम लोग जुट रहे हैं लेकिन तब भी फैसले नहीं हो पाए हैं कि अगला अध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष कौन बनेगा इस पर अब तक पर्दा पड़ा हुआ है दरअसल भारतीय जनता पार्टी में बहुत सारी चीजें हैं बहुत सारे मुद्दे हैं जिसे सुलझाना आज की तारीख में जरूरी हो गया है और सवाल सबसे बड़ा यही है कि बीजेपी के मुद्दे को क्या बीजेपी सुलझाने में रुचि ले रही है या मौजूदा निजाम भारतीय जनता पार्टी का जिसे मोदी शाह का निजाम कहते हैं वह निजाम अब इस बात को महसूस कर चुका कि पार्टी के ऊपर अगर कमान छूट गई तो सत्ता के ऊपर कमान छूटने में देर नहीं लगेगी कारण क्या है ??
एक और कारण
एक और कारण भारतीय जनता पार्टी के अंदर बढ़ रही नाराजगी है दूसरा कारण संघ से बढ़ दूरी है और सबसे महत्त्वपूर्ण कारण जस्टिस चंद्रचूड़ का एक फैसला है जिस फैसले ने सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए व्यक्ति को इस हद तक डरा दिया है अगर अध्यक्ष पद पर बैठा हुआ व्यक्ति अपनी ग्रिप में नहीं आया तो सत्ता की लगाम हाथ से छूट सकती है प्रधानमंत्री का पद हाथ से छूट सकता है यह तमाम परिस्थितियां बता रही है कि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष पर काबिज लोग भारतीय जनता पार्टी को किसी भी कीमत पर अपने कब्जे में रखना चाहते हैं तभी उन्हें ऐसे उपयुक्त व्यक्ति की तलाश में दिक्कतें आ रही है जो पार्टी की कमान संभाल सके क्या-क्या दिक्कतें हैं एक-एक कर उस पर उन सभी बातों आते हैं। सबसे पहला मुद्दा नरेंद्र मोदी और अमित शाह को अपने इशारों पर अपने संकेतों पर चलने वाला एक ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो जेपी नड्डा की कार्य क्षमता की बराबरी का हो जेपी नड्डा से भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान को यानी मोदी शाह को कभी कोई दिक्कत नहीं रही इसलिए भी दिक्कत नहीं रही कि जेपी नड्डाहमेशा नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सामने शीश झुकाए खड़े रहे देवताओं का देवता कहते रहे।इन दोनों के पीछे चलते रहे एयरपोर्ट पर गुलदस्ता लेकर मौजूद होते रहे और तमाम परिस्थितियों में सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए व्यक्ति के गुणगान में उनकी चरण वंदना में राजनीतिक चरण वंदना में अपने आप को पूरी तरह से तल्लीन रखते चले गए जेपी नड्डा के कार्यकाल में भाजपा को कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं हुई।
जेपी नड्डा के अध्यक्ष बनने के या कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद से ही देखे महाराष्ट्र के चुनाव में क्या हुआ 2019 में आपको पता है हरियाणा में बहुमत की जगह गठबंधन करने पर मजबूर होना पड़ा झारखंड की सत्ता फिसल गई बिहार में गठबंधन सहयोगी फिसल गया बड़ी मुश्किल से चुनाव के पहले लाया गया और कब तक नीतीश कुमार इधर रहेंगे कोई नहीं जानता उत्तर प्रदेश में लोकसभा में सीटें घट गई लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का 400 का नारा बिखर गया। जेपी नड्डा का गृह राज्य हिमाचल प्रदेश भी भारतीय जनता पार्टी के हाथ से फिसल गया।
जेपी नड्डा के नाम उपलब्धियों के तौर पर आप कह सकते हैं छत्तीसगढ़
यह सारी चीजें हुई कर्नाटक का चुनाव जिसमें वह देवताओं के देवता के आशीर्वाद से वंचित होने जैसी चेतावनी तक दे रहे थे वहां के वोटर्स को वह राज्य में उनके हाथ से फिसल गया तो जेपी नड्डा के नाम उपलब्धियों के तौर पर आप कह सकते हैं छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापस आ गई राजस्थान में रोटेशन की प्रक्रिया है तो उसका क्रेडिट जेपी नड्डा को नहीं दे सकते हर 5 साल पर रोटेशन होता है। उड़ीसा में पार्टी की पहली बार सरकार बनी इस बात का क्रेडिट जेपी नड्डा को मिल सकता है।
दिल्ली में सरकार नहीं बनी
दिल्ली में सरकार बनी नहीं अरविंद केजरीवाल दोबारा आ गए यह सब जेपी नड्डा के कार्यकाल में हुआ लेकिन इन सबके बावजूद नरेंद्र मोदी और अमित शाह को जेपी नड्डा राजनीतिक तौर पर सूटेबल व्यक्ति लगे उपयुक्त व्यक्ति लगे हालांकि चुनावी हार जो अलग-अलग राज्यों में मैंने गिनाई उसको पूरी तरह से जेपी नड्डा पर थोप भी नहीं सकते क्योंकि जेपी नड्डा को तो सिर्फ एक मोहरा समझा जाता था।
जेपी नड्डा से कई गुना ज्यादा ताकत तो कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष
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जेपी नड्डा से कई गुना ज्यादा ताकत तो कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष की है जिस कांग्रेस पार्टी पर तोहमत लगता है कि वह राहुल गांधी चला रहे हैं लेकिन राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष उनकी मौजूदगी के बावजूद कांग्रेस पार्टी के अंदर जितनी ताकत जितनी ज्यादा ताकत कांग्रेस पार्टीने अपने निर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को दे रखी है उसका 1/10 उसका जेपी नड्डा के जिम्मे नहीं हसाफ – साफ दिख रहा है लेकिन फिर भी वह ठीकलगते थे अब जेपी नड्डा की जगह किसे लाया जाए सवाल यह है क्या वह व्यक्ति संघ की पसंद होगा या वह व्यक्ति भाजपा की पसंद होगा।
इस महत्त्वपूर्ण सवाल पर चलते हैं जिस सवाल को लेकर भारतीय जनता पार्टी के अंदर मंथन हो ना हो मोदी शाह के मंथन में जरूर डूबे हुए हैं व सवाल यह है कि नए अध्यक्ष के ऐसे उपयुक्त व्यक्ति की तलाश जो जिस व्यक्ति के नाम पर संघ को आपत्ति ना हो लेकिन ऐसे व्यक्ति जिस पर संघ को आपत्ति ना हो आरएसएस कोई ऑब्जेक्शन ना करे वह व्यक्ति अध्यक्ष बनने के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए प्रतिबद्ध रह पाएगा उनके प्रति अपनी निष्ठा का सार्वजनिक प्रदर्शन करता रहेगा।
इस बात को लेकर मोदी शाह कंफर्म नहीं हो रहे हैं कि आखिर यह ताज किसके सर सौपे जाएं जैसा कि आपको याद होगा या जिन्हें जानकारी नहीं है उनकी जानकारी के लिए बता दूं कांग्रेस पार्टी ने सीताराम केसरी को पीवी नरसिंहा राव ने ऐसे ही अपना रबर स्टांप समझकर अध्यक्ष चुना था। और महीने दो महीने बीतते बीतते सीताराम केसरी सीताराम केसरी ही नरसिंहा राव को संसदीय दल के नेता पद छोड़ने का फरमान जारी कर दिया।
और अंततः कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व से नरसिंहा राव विदा हो गये।लाल कृष्ण आडवाणी युग के बाद जिस तरह से नरेंद्र मोदी युग काबिज हुआ तो नरेंद्र मोदी युग के लोगों को और सत्ता के शीर्ष पर विराजमान लोगों को ये जरूर बखूबी पता है कि अब अगली पीढ़ी का रास्ता वह कैसे रोक पाते हैं।
इसके लिए उपयुक्त व्यक्ति की तलाश हो रही है संघ की तरफ से कहा जा रहा है कि कभी संजय जोशी का नाम कभी शिवराज सिंह चौहान का नाम कभी नीतिन गडकरी का नाम अलग-अलग नाम लिए जा रहे हैं लेकिन इन तीनों को अध्यक्ष बनाने की तो सपने में भी कोई नहीं सोच सकते वसुंधरा राजे का नाम तो संघ लें ही नहीं रहा।
संघ जिसे चाहता है उसे मोदी शाह मुहर नहीं लगाए
क्योंकि उसे पता है कि वसुंधरा राज को बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष मोदी शाह पहले ही रिजेक्ट करेंगे अब सवाल यह है कि संघ की पसंद मोदी शाह की पसंद क्यों नहीं है।सबको पता है कि संघ के जो एजेंडे थे उनको अपनी तरफ से लागू करने की भरपूर कोशिश नरेंद्र मोदी ने अपने 10 साल के प्रधानमंत्री काल में की लेकिन संघ के लोगों को कोई अहमियत नहीं दी हालांकि पहले कार्यकाल में 2014 से लेकर 2019 तक संघ की एक अच्छी स्थिति थी।क्योंकि केंद्र के हर मंत्रालय में संघ ने अपना एक आदमी तैनात कर रखा था। जो संघ के काम को संघ की तरफ से जो एजेंडे होते थे उस मंत्रालय के द्वारा जनित कराए जाने वाले एजेंडे उनको लागू करने के लिए एक व्यक्ति की वहां तैनाती की गई थी। दौर वहां अपना आदमी बिठाने का दौर नरेंद्र मोदी की दूसरी ताजपोशी के के बाद संघ और बीजेपी दुरी दिखने लगा। जब सत्ता मोदी शाह की बन चुकी थी पूछता कौन है संघ को जेपी नड्डा ने तो बयान भी दे दिया था लोकसभा चुनाव के दरमियान कि चुनाव जीतने के लिए उन्हें संघ की कोई आवश्यकता नहीं है आज की तारीख में किसको कितनी आवश्यकता है वह
सबको पता है और इस आवश्यकताओं के दौर में संघ नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सत्ता में टिकने देगा यदि उसकी मर्जी का व्यक्ति अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गया तो क्या वह राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल के नेता के पद पर नए नेता का ताजपोशी करेगा।
यह सवाल कहीं ना कहीं अंदर तक डरा रहा है और ये सवाल क्यों आ रहा तो इस उदाहरणों के सहारे समझिए कई सारे ऐसे मौके आए हैं राजनीति में जिसके वजह से भी क्योंकि सत्ता जिस ढंग से चलाई गई है। वह सबने देखा है कि दो लोगों ने सरकार और संगठन अपने तरीके चलाएं चाहें संगठन टुट जाएं आरएसएस का ख्याल रखा ना अपने संसदीय दल के लोगों का रखा जो सांसद चुन कर आए हैं।
उनकी क्या अहमियत थी कई सारे सांसद अक्सर हम जैसे पत्रकारों से बातचीत दौरान कहते थे कि विपक्ष के सांसद तो सरकार के ऊपर आलोचना कर कर लेते हैं खुलकर बोल लेते हैं बहुत सारी चीजें लेकिन वह तो बोल भी नहीं सकते उनकी दुर्दशा और ज्यादा है कि वह जनता के बीच जातें थें तब वो कहते थें कि आप किस काम के हैं। कोई काम नहीं करा पाते और सरकार में उन सांसदों की अहमियत इतनी थी कि वह सांसद लगातार चुन कर आते जा रहे हैं और मंत्री बनने के लिए ब्यूरोक्रेसी से रिटायर कोई आदमी या वीआरएस ले चुका कोई अश्विनी वैष्णव कोई हरदीप पुरी कोई एस जयशंकर इस तरह के लोग आ जाते हैं सत्ता में बैठने के लिए तो जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों और संघ की शाखा से निकलकर आने वाले लोग जो कई बार से लगातार जीते हारे वो सब नजरंदाज हो सकें। भला कौन पूछता है तो क्या पार्टी का निजाम बदलते तमाम लोग जिनकी उपेक्षा करके जिनकी ताकत के बूते बहुमत मिलता है और उन्हीं की उपेक्षा कर सरकार बनाई जाती है क्या वह लोग उसके बाद मौजूदा सत्ता के निजाम को शीर्ष पर बैठे व्यक्तियों को बक्स देंगे क्या पार्टी के अंदर नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट तेज नहीं होगी।
यह सवाल है और इस सवाल को जो बल मिलता है वह तीसरा महत्त्वपूर्ण पहलू है जस्टिस चंद्रचूड़ का 11 मई 2023 का जजमेंट जो लोग भारत की संवैधानिक व्यवस्था में राजनीतिक पार्टियों की स्थिति को समझते हैं उन्हें पता है कि कोई भी पार्टी या कोई भी नेता अपने संसदीय दल या विधायक दल के ऊपर जो कंट्रोल रखता है जो उन्हें दिशा निर्देश देता है कि करना क्या है वह किसके माध्यम से करता है उसके लिए पार्टी का श चीफ विप के माध्यम से ही सांसदों को
निर्देश दिए जाते हैं कि करना है तो करना क्या है सदन के अंदर और क्या नहीं करना है किसके पक्ष में वोट देने हैं किसके पक्ष में वोट नहीं देना है।
कहां वर्कआउट करना है। यह सारे निर्देश सदन में उपस्थित रहना है। यह सारे निर्देश चीफ विप के यानी पार्टी के सचेतक के माध्यम से क्रियान्वित कराए जाते हैं। आमतौर पर 11 मई 2023 तक ये परंपरा यह थी कि पार्टी के संसदीय दल का नेता लोकसभा अध्यक्ष या राज्यों में विधायक दल का नेता विधानसभा अध्यक्ष को लिख कर दे देता है कि व्यक्ति हमारी पार्टी का हमारे पार्टी के विधायक दल का सचेतक होग अब 11 मई 2023 को महाराष्ट्र के मामले पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों कीसंविधान पीठ ने फैसला दिया कि चूंकि पार्टी पर पार्टी के द्वारा संसदीय या विधायक दल को कंट्रोल करने का एकमात्र इंस्ट्रूमेंट एक मात्र उपकरण अगर होता है औजार होता है तो वह विप होता है सचेतक होता है।
लिहाजा क्योंकि संसदीय दल भी पार्टी की एक इकाई है नरेंद्र मोदी भी कहते हैं कि पार्टी मां समान होती है तो जो पार्टी मां समान होती है वह तो निश्चित तौर पर नियंत्रित करेगी तो पार्टी के पास अपने संसदीय विधायक दल को नियंत्रित करने के लिए जो अपेट है जो औजार है उसे कहते हैं सचेतक चीफ विप तो पार्टी ही जस्टिस चंद्रचूड़ की संविधान पीटने फैसला दिया किपार्टी ही तय करेगी यानी पार्टी का आला कमान ही तयकरेगा कि लोकसभा विधानसभाओं में किसी पार्टी का चीफ विप कौन होगा अब यह सवाल जब सामने आ गया तो पार्टी अध्यक्ष पद पर कोई ऐसा व्यक्ति बैठ जाए जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मर्जी का ना हो और वह अपनी मर्जी का चीफ बना दे अपनी मर्जी का सचेतक बना दे और अपनी मर्जी का सचेतक बनाने केबाद उस सचेतक के माध्यम से नेतृत्व परिवर्तन की कवायत शुरू हो जाए कि अमुक बिल पर पार्टी के इतने लोगों को वोट नहीं डालना है।
पार्टी के अंदर नेतृत्व परिवर्तन
मोदी की सरकार को पार्टी के अंदर ही सबोटाज कर देना है पूर्व में भी देखा गया है कि पार्टी के अंदर नेतृत्व परिवर्तन हुआ है राज्य स्तर पर तो बहुत हुआ है विधायक दल में चाहे 1979 में कपूरी ठाकुर का बिहार में रहा हो जिनके अगेंस्ट पार्टी के अंदर ही विधायक दल में विद्रोह हुआ चाहे कैप्टन अमरिंदर सिंह के अंदर के को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए कांग्रेस पार्टी में जो हुआ वह सबने देखा खुद गुजरात में केशु भाई पटेल को हटाने के लिए 1995 में जो हुआ वो पूरे देश ने देखा पार्टी विद द डिफरेंस का नारा पीट गया था किस ढंग से केशु पटेल को हटाकर सुरेश मेहता को बनाया गया था तो पार्टी के अंदर पार्टी के आंतरिक विद्रोह की संभावना को खत्म करने के लिए पार्टी के सचेतक की संवैधानिक स्थिति अब बहुत मजबूत हो गई है।
और उस सचेतक की नियुक्ति का अधिकार पार्टी के आला कमान को सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया है ना कि पार्टी के संसदीय दल के नेता यानी भाजपा के आज की भाजपा के संदर्भ में कहे तो लोकसभा में भाजपा संसदीय दल के विप की नियुक्ति का अधिकार नरेंद्र मोदी को नहीं भाजपा के अध्यक्ष को है जब चाहे वह भाजपा का अध्यक्ष पुराने विप को बदल के नए विप को सामने ला सकता है और विप के माध्यम से जब पार्टी को कंट्रोल करने की कवायद होगी तो नरेंद्र मोदी की पकड़ जो ढीली होती हुई दिख रही है।
अमित शाह की चाणक्य नीति जो कमजोर
अमित शाह की चाणक्य नीति जो कमजोर पड़ती हुई दिख रही है वो और कमजोर पड़ेगी और पार्टी के अंदर से नए नेता के चुनाव की कवायत भी की जा सकती है तो ये सारे घटनाक्रम को देखकर सारी परिस्थितियों को देखकर यह कहा जा सकता है कि 2014 वाले नरेंद्र मोदी अब नहीं है 2014 वाले अमित शाह नहीं है और पार्टी पर कंट्रोल की पूरी कवायत के लिए एक रबर स्टैंप अध्यक्ष की तलाश हो रही है।
जिसमें कभी देवेंद्र फडणवीस का नाम आता है कभी केशव प्रसाद मौर्य का नाम आता है। कभी सुनील बंसल का नाम आता है तो कभी कोई और नाम आ जाता है भूपेंद्र यादव का नाम भी कुछ लोग ले लेते हैं लेकिन सवाल यही है कि क्या उसके लिए पार्टी तैयार है और पार्टी के लोग जो नागपुर में गणेश परिक्रमा कर रहे हैं जो तमाम जानकारी दे रहे हैं कि अभी वक्त है निर्णायक वक्त कि पार्टी के ऊपर संघ अपना कंट्रोल स्थापित करें तभी जाकर के उस कथित गुजरात लॉबी से छुटकारा मिल सकता है।
देश को जितने छुटकारे की जरूरत हो ना हो भाजपा के सांसदों और भाजपा के लोगों को ऐसा लगता है कि मौजूदा नेतृत्व से छुटकारे की ज्यादा जरूरत है और इसी जरूरत को इस पूरे खेल को इसकी नब्ज को पहचानते हुए भारतीय जनता पार्टी के अंदर जो हालात हैं उस हालात में नए अध्यक्ष के चुनाव में या नए वर्किंग प्रेसिडेंट कार्यकारी अध्यक्ष के चुनाव में तमाम मशक्कत करनी पड़ रही है और आज 70 दिन ज्यादा हो गए नरेंद्र मोदी की सरकार बने हुए 4 जून को नतीजा आया था 9 जून को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी बीच में 31 दिन का एक महीना भी था तो कुल मिलाकर आप देखें तो आज 83 दिन हो गए नरेंद्र मोदी को तीसरी बार सरकार बनाए हुए लेकिन 83 दिनों में भारतीय जनता पार्टी अपना अध्यक्ष तक नहीं तलाश पाई जहां एक तरफ विपक्ष तकरीबन 250 सांसदों के साथ एक बेहद ताकतवर स्थिति में बैठा हुआ है वहीं भारतीय जनता पार्टी के अंदर नेतृत्व परिवर्तन की जो कवायद है वोह कवायद संघ कब शुरू कर दे और कब किसे मोहरा बनाकर सामने ला दे यह डर ऐसा डर है जिस डर के आगे नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर के तमाममाथा पच्ची चल रही है अभी देखते जाइए कितने दिनों तक माथा पच्ची चलती है और इस मंथन से कौन सा नया नाम कौन सा हीरा निकलकर सामने आता है पार्टी के अध्यक्ष के लिए ये देखना पड़ेगा।