Rezang La War: भारतीय सेना के शौर्य, पराक्रम और बलिदान की गाथाएं तो इतनी है कि जिनको सुनने बैठा जाए तो सुबह से रात और रात से वापस सुबह हो जाएगी पर वो गाथाएं खत्म नहीं होंगी पर आज हम आपको एक ऐसे खास युद्ध के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें हमारे देश के वीर जवानों ने 1000 से ज्यादा चीनी फौजियों को मार गिराया था।
Rezang La War
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रेजांगला युद्ध की कहानी
इस युद्ध का नाम था रेजांगला युद्ध।’आज से 60 साल पहले 1962 में भारत-चीन के बीच एक युद्ध लड़ा गया था जिसमें वैसे तो भारत हार गया था पर दक्षिणी लद्दाख में रेजांगला पहाड़ी की चोटी पर तैनात जवानों ने हार नहीं मानी और चीन को वह चोट दी जिसका दर्द उसको कहीं न कहीं आज तक है।तारीख थी 18 नवंबर 1962 17,000 फीट की ऊंचाई पर हड्डियों को जमा देने वाली ठंड हो रही थी। भारत युद्ध लगभग हार चुका था और वहाँ मौजूद 13 कुमाऊं बटालियन जिसमें 120 जवान थे, उनको चौकी छोड़ देने का आदेश मिल चुका था पर उस बटालियन का नेतृत्व कर रहे मेजर शैतान सिंह ने चीनियों के आगे झुकना नहीं बल्कि लड़ना चुना। उन्होंने वहाँ मौजूद जवानों से कह दिया कि जो चाहे जा सकता है पर मैं नहीं जाऊंगा। उनके इस जज्बे को देखकर कोई भी उनका साथ छोड़कर नहीं गया। हालांकि इन जवानों को उस ठंड में लड़ने तो दूर रहने तक का कोई अनुभव नहीं था क्योंकि वो पूरी बटालियन नवंबर के शुरु में ही वहाँ आयी थी पर यह कहना शायद गलत नहीं होगा कि जब दिल में देशभक्ति हो तो इंसान हर मुश्किल से लड़ जाता है और हर कष्ट सह जाता है।
चीन ने हमला
फिर वह वक्त आया जब चीन ने हमला किया। सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे, चीन की तरफ से लगभग 3 हज़ार सैनिकों ने हमला किया। अचानक से गोलीबारी शुरू हो गई थी। इधर 120 सैनिक थे और उधर 3000, उधर हर सुविधा थी और इधर सीमित साधन और कोई मदद नहीं लेकिन फिर भी हमारे जवानों ने जो पराक्रम और वीरता दिखाई वह हर भारतीय के अंदर जोश और गर्व भरने के लिए काफी है।यह युद्ध लगभग तीन घंटे तक चला और इन तीन घंटों में चीन ने चार बार हमला किया पर भारतीय जवानों ने चारों बार चीन के हमलों को नाकाम कर दिया। फिर चीन ने वह किया जिसकी उम्मीद किसी भी ईमानदारी से जंग लड़ने वाले सैनिक को नहीं होती, पीछे से वार चीन को जब आगे से सफलता नहीं मिली तो उसने पाँचवा हमला पीछे से करने का सोचा और उसकी यह बेईमानी काम भी कर गई।
रेजांगला लड़ाई के सैनिक
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रेजांगला लड़ाई के सैनिक रामचंद्र यादव बताते हैं कि सुबह पौने सात बजे उन्हें अपने पीछे 800 के करीब लोग नजर आये, तो पहले तो उन्हें लगा कि यह अल्फा कम्पनी है जो उनकी मदद करने आयी है पर जब उन्होंने घोड़े और याक देखे तो उन्हें समझ आया कि यह तो चीनी सैनिक हैं। सैनिक रामचंद्र यादव का कहना है कि अगर हमला पीछे से नहीं होता तो वह पोस्ट चीन के पास नहीं जाती।इस युद्ध में हमारे 114 जवान शहीद हुए और 6 को चीन ने बंदी बना लिया था पर अपनी चतुराई से वो सब दुश्मन की पकड़ से 24 घंटे में ही बचकर वापस आ गए हमारे 120 वीर जवानों ने चीन के 1000 से ज्यादा सैनिकों को मार गिराया था। यह अपने आप में एक चौकाने वाली बात थी|
जब यह खबर बचे हुए सैनिकों ने
और जब यह खबर बचे हुए सैनिकों ने बाकियों तक पहुंचाई तो उनको भी यकीन नहीं हुआ था लेकिन जब उस जगह का जायजा लिया गया तो सबके होश उड़ गए।मेजर शैतान सिंह और उनके सभी साथी अपनी आखिरी सांस तक लड़े चीनी मोर्टार के हमले में तो मेजर का एक पैर ही खत्म हो गया था, पर फिर भी वो लड़ने के लिए खड़े हुए लेकिन इस बार उनके सीने पर गोलियां लग गई और उसके बाद फिर वह कुछ न कर सके।
पराक्रम और वीरता
इसी अविश्वसनीय पराक्रम और वीरता के लिए बाद में इस सैन्य टुकड़ी को पाँच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था।वीरता और बलिदान से भरी ऐसी सच्ची गाथा को सुनकर भी अपने देश और देश के जवानों पर गर्व नहीं होगा तो कब होगा। भारतीय सेना द्वारा किया गया कौन सा युद्ध, मिशन या काम आपको निजी तौर पर सबसे ज्यादा पसंद है और आप में एक जोश और देशभक्ति की भावना भर देता है? हमें कमेंटबॉक्स में लिखकर जरूर बताएं और इस वीडियो को लाईक करना बिल्कुल न भूलें।