Trimohini Sangam:भारत की सबसे बड़ी उत्तरवाहिनी गंगा का संगम त्रिमोहिनी संगम के नाम से जाना जाता है। यह बिहार के कटिहार जिले के अंतर्गत कुर्सेला प्रखंड के कटरिया गाँव के पास स्थित है। यहाँ के प्रमुख रूप से कोसी नदी का गंगा नदी में मिलन होता है।30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी जी की मृत्यु के बाद 12 फरवरी, 1948 में उनके अस्थि कलश जिन तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है। इसी के पुण्य स्मरण में हर साल 12 फरवरी को यहां भव्य कृषि मेला भी लगा करता था और आज भी गांधी जी की विचारधारा रखने वाले लोग उनके सम्मान में यहां आते हैं।
Trimohini Sangam
इसी ऐतिहासिक जगह के सुन्दरीकरण के लिए 2018 में 3 करोड़ से भी ज्यादा बजट स्वीकृत हुआ था । अब हम 2023 में कदम रख चुके हैं तो आईए देखते हैं कि आखिर कितना बदला है त्रिमोहिनी संगम ।संगम की सुंदरता तो आप तब देखेंगे जब वहां पहुंचेगे पर क्या हो अगर आपको पता चले कि त्रिमोहिमी संगम स्थल तक पहुंचने के लिए कोई सड़क ही नहीं है। आपको अगर यहां आना है तो कच्चे रास्तों को पार करके आना होगा। सड़क न होने के कारण लोगों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसी जगह पर गाड़ियों के चलने से उनमें कई तरह की दिक्कते आ जाती है जिससे देश के दूसरे राज्यों से आये पर्यटक यहां आकर पछताने के सिवा कुछ नहीं कर पाते। ग्रामीण कार्य विभाग से लगभग 753 लाख की राशि स्वीकृत की गई थी जिससे 27 मई 2021 तक राष्ट्रीय हाइवे 31 से लेकर संगम स्थल तक सड़क और पुल बनना था पर 2021 के बाद 2022 भी गुजर गया लेकिन यह काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया। और अब बात अगर सुंदरीकरण की करें तो आपको यहां बैठने के लिए चंद बेंच और सोलर स्ट्रीट लाईट के सिवा कुछ नहीं दिखेगा।इसके अलावा यहां बिजली की भी समस्या मौजूद है। हां यह अविश्वसनीय बात है पर आजादी के 75 साल बाद भी यहां अभी तक विद्युत आपूर्ति नहीं हो सकी है। विद्युत आपूर्ति हो जाने से लोगों को काफी समस्याओं से छुटकारा मिलेगा।
हम उम्मीद करते हैं कि बाकी काम जल्द से जल्द पूरा किया जाएगा और जैसा कि वादा था त्रिमोहिमी संगम पर्यटन हब जरुर बनेगा देश के बहुत से राज्यों से पर्यटक यहाँ आते हैं, तो अगर यहाँ सुविधाएं उपलब्ध हो जायें तो और भी बड़े पैमाने पर लोग यहां आ पाएंगे।
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आपको बताते चलें कि त्रिमोहिमी संगम स्थल का धार्मिक महत्व भी बहुत है। गंगोत्री से गंगा सागर तक माता गंगा के सफर में जहाँ जहाँ उत्तरवाहिनी के रूप में गुजरी है, वह हर जगह बहुत ही प्रसिद्ध है, चाहे हरिद्वार हो या प्रयागराज। उत्तरवाहिनी गंगा का अंतिम पड़ाव या विश्राम स्थल कुर्सेला पुल के समीप ही है कार्तिक पूर्णिमा पर यहां स्नान करने के लिए दूर दूर से तीर्थयात्री आते हैं, और माघी पूर्णिमा के शुभ अवसर पर एक अदभुत सुंदर मेला भी लगता है। इसके साथ ही ये भारत की सबसे बड़ी उत्तरायण गंगा की धार भी है जो कि बटेश्वर नाथ धाम के समीप से कुर्सेला तक है।
यहीं से गंगा पुर्विवाहिनी होकर गंगा सागर में मिलती है। सीमांचल से सभी जिला से हर रोज हजारों लोग यहाँ अंतिम संस्कार के लिए आते है पर यहाँ बेसिक सुविधाओं के न होने से लोगों को शाम के समय गाड़ियों की रोशनी में अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करना पड़ता है और जगह निर्धारित नहीं होने की वजह से अंतिम संस्कार कहीं भी हो जाता है जिससे स्वच्छता प्रभावित होती है भारत की सबसे बड़ी उत्तरायण गंगा के संगम होने की वजह से पूरे देश से ही यहाँ लोग अपने परिजनों का अस्थि विसर्जन करने आते है।