NCRB Report 2023: 20 सितंबर दिन सोमवार को लोकसभा से महिला आरक्षण विधेयक को पास हो गया वो भी क़रीब 454 वोटों से वहीं विपक्ष में महज़ 2 वोट पड़ा इसी के साथ संसद में तो महिलाओ को 33 प्रतिशत आरक्षण मिल गया ये अलग बात है कि ये आरक्षण वर्तमान 2024 में नहीं मिलेगा बल्कि कि 2029 के लोकसभा चुनाव में मिलेगा।
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लेकिन हम यहां पर आज बात कर रहे हैं कि महिला सुरक्षा की क्योंकि 2014 में जब बीजेपी विपक्ष में थी तब महिला सुरक्षा को बड़ा मुद्दा बनाएं था,उस समय बीजेपी का नारा था कि बहुत हुआ नारी वार अबकी बार मोदी सरकार , पिछले क़रीब 9 साल से यानी 2014 से भारत में भाजपा की सरकार है। इस सरकार को आम आदमी मोदी सरकार भी कहता है क्योंकि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और वही इस सरकार का सबसे मुख्य चेहरा भी हैं। नरेंद्र मोदी से पहले हमारे देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे जो कि कांग्रेस के नेता थे। वह 2004 से 2014 तक, यानी 10 साल देश के प्रधानमंत्री रहे, वहीं दूसरी तरफ अब मोदी सरकार को भी अगले साल 2024 में 10 साल पूरे हो जाएंगे, तो आइये एक नजर डालते हैं कि इन दोनों के कार्यकालों में महिलाओं के प्रति अपराध की क्या स्थिति रही।
पर उससे पहले आपको बता दें कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि किसी भी तरह के अपराध के आँकड़े जटिल हो सकते हैं और विभिन्न प्रकार के कारणों से प्रभावित हो सकते हैं, और अलग समय अवधियों और सरकारों के बीच सीधी तुलना करना मुश्किल है। इसके अलावा, महिलाओं से संबंधित अपराध के आँकड़े विशेष रूप से आसानी से उपलब्ध नहीं होते।
मनमोहन सिंह की सरकार में महिलाओं के खिलाफ अपराध
मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कई मामले सामने आए जिन पर पूरे देश की मीडिया का ध्यान गया, जिनमें 2012 का दिल्ली गैंग रेप और 2013 का मुंबई गैंग रेप शामिल है। उस समय सरकार को महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दे में गंभीरता न दिखाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, इस अवधि के दौरान भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज मामलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई थी। एनसीआरबी के कुछ आंकड़े इस प्रकार हैं: 2004 में, भारत में महिलाओं के खिलाफ कुल 182,505 अपराध दर्ज किए गए थे। यह संख्या 2012 में बढ़कर 244,270 और 2014 में 309,546 हो गई। रिपोर्ट किए गए सबसे आम अपराधों में पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता, उसके बाद महिलाओं पर उनकी लज्जा भंग करने के इरादे से हमला, अपहरण और बलात्कार शामिल थे। महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर (प्रति 100,000 महिला जनसंख्या पर अपराधों की संख्या) भी 2004 में 33.7 से बढ़कर 2014 में 53.9 हो गई।
मोदी सरकार में महिलाओं के खिलाफ अपराध
2014 के बाद से भारत ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों की एक महत्वपूर्ण संख्या देखी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2014 में, भारत में महिलाओं के खिलाफ 3,39,457 अपराध दर्ज किए गए, जिनमें बलात्कार के 36,735 मामले शामिल थे और 2019 में, महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 4,05,861 थी, जिसमें बलात्कार के 32,033 मामले शामिल थे।
और बड़ते वर्षों के साथ यह आंकड़े बस बड़े ही होते चले गए। 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर 56.5 प्रतिशत हो गई थी और 2021 में आश्चर्यजनक रूप से से बड़कर यह 64.5 हो गई। 2014 में यह दर 53.9 थी और 2020 में 56.5 पर 2021 में अचानक ऐसा क्या हो गया कि यह 64.5 तक पहुंच गई। यह एक चिंता का विषय है और मोदी सरकार को इसके लिए कदे कदम उठाने की जरुरत है।
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किस सरकार ने क्या कदम उठाए?
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पहले मनमोहन सिंह के कार्यकाल की बात करें तो उनके समय में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 लाया गया। यह अधिनियम 2005 में महिलाओं को घरेलू हिंसा और उनके पति या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया था।
आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013: यह अधिनियम 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले के जवाब में पारित किया गया था। इसमें बलात्कार एसिड अटैक और पीछा करने जैसे अपराधों के लिए कठोर सजा को शामिल किया गया था। इसके अलावा कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम,
2013 लाया गया जोकि महिलाओं को उनके कार्यस्थलों पर यौन उत्पीडन से बचाने के लिए लाया गया
था।
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अब मोदी सरकार की बात करें तो मोदी सरकार के समय में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम,
2018 लागू किया गया। यह कानून बलात्कार और यौन उत्पीड़न से संबंधित मौजूदा कानूनों को मजबूत करने के लिए पारित किया गया था। इसके अलावा मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019: यह कानून तीन
तलाक की प्रथा का अपराधीकरण करता है, जो मुस्लिम पुरुषों को तीन बार “तलाक” कहकर अपनी
पत्नियों को तलाक देने की अनुमति देता था।
कमी कहां रह गई?
पहले मनमोहन सिंह सरकार की कमियों की बात करें तो उनके समय में कानूनों को सही से लागू नहीं किया गया। ऐसे कई उदाहरण थे जहां हिंसा के पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाया और अपराधियों को सजा नहीं मिली। साथ ही महिलाओं की सुरक्षा और सुरक्षा के मुद्दे को संबोधित करने के लिए सरकार की ओर से राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी। कई राजनेताओं ने असंवेदनशील टिप्पणियां की और महिलाओं को उनके खिलाफ किए गए अपराधों के लिए दोषी ठहराया, जिसने इस मुद्दे से निपटने के सरकार के प्रयासों को और कमजोर कर दिया। और सबसे अहम बात की इस सरकार का बुनियादी ढाँचा ही खराब था। जैसे कि सीसीटीवी कैमरे, स्ट्रीट लाइट और सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं, जो सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकती थीं।
अब मोदी सरकार की कमियों की बात करें तो यह सरकार भी उसी कठघरे में खड़ी है जिसमें पिछली सरकार खड़ी थी। कानून बनाए गए लेकिन उनको उचित ढंग से लागू नहीं किया गया। किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार हुआ तो उसी को आरोपी बना दिया गया। लड़कियों के कपड़ों पर बाते की गई जबकि समाज में आए दिन छोटी छोटी बच्चियों के साथ दरिंदगी होती रही। ऐसा लगता है जैसे समाज और सरकार दोनों ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का मानकीकरण कर दिया है।
क्या किया जाना चाहिए?
महिलाओं को सुरक्षा देने में दोनों ही सरकारें विफल रहीं हैं पर 2021 के बाद से या कहें की महामारी के बाद से यह स्थिति भयावह हो गई हैं और इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है। कानून बनते रहते हैं और हर एक नई घटना के साथ उनमें परिवर्तन भी होते रहते हैं पर जरूरत है उन कानूनों को कठोरता से लागू करने की। कानूनों और नियमों को सिर्फ कागजों पर लिख देने से कुछ नहीं बदलेगा, उनको जमीनी हकीकत बनाना होगा।