Akash Anand: कुछ दिन पहले ही मायावती ने अपने उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। मायावती भी वहीं राह बढ़ी जो कि बाकी दल के लोग बढ़े। इस समय युपी के राजनीति में सपा पर ये आरोप लगता था कि वो परिवारवाद को बढ़ावा दे रहे अब वहीं काम मायावती भी कर रहीं हैं। एक दौर में जब रैलियों में मायावती कहती थी कि जिस तरह कांशीराम ने परिवार को नहीं बनाया उसी तरह में भी उनके राहों पर चलने के प्रयास करूंगा।लेकिन अब वहीं मायावती कांशीराम के उन आदर्शों को भुलाकर स्वयं भी परिवारवाद की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं।
Akash Anand
मायावती ने अपने पार्टी के उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। जिस पार्टी को कांशीराम ने आर्थिक रूप से शोषित और सामाजिक रूप से पिछड़ों के उत्थान के लिए बनाया था। कांशीराम ने भीमराव अंबेडकर के नारे को अपनाया।उन्होंने कहा कि राजनैतिक सत्ता सभी समस्याओं की मास्टर चाबी है।
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परिवार की सियासत दुर नहीं हो पाईं मायावती
अब मायावती ने उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया है। यूं कहिए कि मायावती भी परिवारवाद के उस राजनीति से दुर नहीं हो पाईं। अक्सर ही जिन दलों का उदय समाजिक न्याय के उद्देश्य से होता है लेकिन बाद में वहीं दल परिवार के राजनीति में परिवर्तित हो जाता है।दलितो उत्थान के लिए कांशीराम ने अभूतपूर्व संघर्ष किया. उन्होंने ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’ का नारा देकर सत्ता संघर्ष के लिए दलितों को तैयार किया। दलितों को अधिकार दिलाने की लड़ाई में कांशीराम को बहुत हद तक सफलता मिली. उन्होंने मायावती को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवाया। देश की राजनीति की धारा बदलने में कांशीराम को कड़े संघर्ष और बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।।।
लेकिन अब उसी राजनीति दल में कोई दलित को नेता नहीं बनाया गया है बल्कि कि मायावती अपने भतीजे “आकाश आनंद” को अपना उत्तराधिकारी चुना।
आप यहीं कहिएगा कि कई दलों में ऐसा होता है जहां परिवार लोगों को सत्ता सौंप दिया गया है। लेकिन ज़रा सोचिए कि अगर यहीं काम कांशीराम ने भी किया होता तब क्या कभी मायावती मुख्यमंत्री बन पाती हैं जवाब है कि कभी नहीं।यूं कहिए कि जिस दल को कांशीराम पिछड़े और दलितों के उत्थान के लिए बनाया था वहीं दल अब एक परिवार की पार्टी बन गई है।।।
बहुजन समाज पार्टी के उन कार्यकर्ताओं क्या हाल
बहुजन समाज पार्टी के उन कार्यकर्ताओं क्या हाल जिन्होंने ने पार्टी के लिए दिन-रात एक करके पार्टी आगे बढ़ाए हैं ज़रा सोचिए उन कार्यकर्ताओं के मन भी मुख्यमंत्री के ख्वाब होगा जो कि शायद अब कभी नहीं बन पाएंगे अगर भविष्य में युपी में बीएसपी सरकार भी बनतीं उनके मुख्यमंत्री चेहरा मायावती या फिर उनके भतीजे होंगे।। खैर मायावती ने कांशीराम के आदर्शों को पहले ही छोड़ दिया जब वो अपने पार्टी के टिकट करोड़ों रूपये लेकर बेचतीं है। जिन आदर्शों लेकर कांशीराम ने पुरे जीवनकाल जिए उन्हीं आदर्शों को मायावती ने बार-बार छोड़ा है भले स्वयं को कांशीराम के विचारों पर चलने वाली नेता कहें लेकिन कड़वा सच यहीं है कि मायावती हर बार कांशीराम के विचारों के विरुद्ध चलीं है यूं कहिए कि मायावती उसी सियासत को अपनाई जहां केवल सत्ता पाना ही लक्ष्य है।