Jyotiraditya Scindia: वैसे भारत में राजा-महाराजा का दौर उस समय से ही समाप्त हो गया जब भारत स्वतंत्र हुआ था। लेकिन आज भी भारतीय राजनीति में कई ऐसे परिवार जो कि राजनीति तौर पर एक्टिव हैं। लेकिन हम इस समय बात कर रहे हैं सिंधिया राजघराने की जिसकी सियासी पृष्ठभुमि नज़र डालें तो आजतक इस परिवार से कोई भी सदस्य मुख्यमंत्री के पद पर नहीं पहुंच सका। ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindia) जब कांग्रेस से बगावत किया तब उनकी पतंगें उड़ी तो होगी लेकिन आखिरकार वहीं हुआ जो इस पहले होता रहता था।
सिंधिया राजघराने को क्यों नहीं मिला मुख्यमंत्री पद ??
जब हम इस पर इतिहास में जाएं तो एक बात समझ आती है कि गांधी परिवार और सिंधिया राजघराने के संबंध कभी भी अच्छा नहीं रहा है। राजमाता विजयराजे सिंधिया के साथ इमरजेंसी के दौरान किया गया दुर्व्यवहार भी सिंधिया परिवार से गांधी परिवार की कटुता को उजागर करता है। इसके अलावा रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के विवादों में सिंधिया परिवार का नाम भी इसका कारण रहे। इसके एक और प्रमुख कारण ये भी है कि सिंधियाओं का प्रभाव केवल ग्वालियर और मालवा क्षेत्र तक ही सीमित था। इस वज़ह से भी इस परिवार किसी सदस्य कभी मुख्यमंत्री बनें का अवसर नहीं मिला है। इसके अलावा जब इतिहास में जाएं तो राजनीतिक इतिहासकार डॉ. जगमोहन द्विवेदी का कहना है कि गांधी परिवार से सिंधिया परिवार के सम्बंधों में उतार चढाव और राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के वजहों से सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य कभी मध्यप्रदेश के सीएम पद पर नहीं पहुंच सका और गांधी परिवार ने न ही सिंधिया परिवार के किसी सदस्य को आगे बढ़ाया।
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माधवराव सिंधिया मां खिलाफ जाकर सीएम नहीं बन सकें
1979 में अपनी मां के विरुद्ध जाकर स्व. माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी। 1984 के लोकसभा चुनावों में अटल बिहारी बाजपेयी चुनाव हरा दिया। माधवराव सिंधिया अपने समय में बड़े प्रतिभाशाली नेताओं की लिस्ट में शामिल थे। वे अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ अच्छे स्वभाव के भी धनी थे। गांधी परिवार से माधवराव सिंधिया के बहुत ही करीबी संबंध रहे। माधवराव सिंधिया का नाम मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल होने के बावजूद भी उन्हें कभी मुख्यमंत्री पद की बागडोर संभालने का अवसर नहीं मिला।
ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं बने सीएम 2018
जब 2018 में कांग्रेस के मध्यप्रदेश सरकार बनी तब सब को लगा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार तो सीएम बन ही जाएंगे लेकिन पार्टी ने कमलनाथ चुना, कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि पार्टी सिंधिया को मुख्यमंत्री इसलिए नहीं बनाया क्योंकि आगे चलकर राहुल गांधी को चुनौती दे सकते हैं क्योंकि सीएम बनते ही वो जन नेता बन जाते और वो कांग्रेस के दिल्ली दरबार को सीधे चुनौती दे सकते हैं। क्योंकि सचिन पायलट हो या फिर सिंधिया हो दोनों में काबिलीयत राहुल गांधी से कहीं अधिक था।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को बगावत से क्या मिला??
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी सियासत की हर चाल चली हर वो चाल जिस वो मुख्यमंत्री कुर्सी तक पहुंच सकें। लेकिन शायद अब यहीं लगा रहा है कि ये सपना कभी पूरा नहीं होगा। मुझे शायरी याद आई जो कि आज राजनीति परिस्थितियों में बिल्कुल सटीक बैठेगा। न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम न यूं कहिए कि ना इधर के हुए और ना ही उधर के हुए। ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस से बगावत किए तब वो सोचें होंगे कि जैसे असम में हेमंत विश्वकर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया गया ठीक उसी तरह सिंधिया भी 20 में नहीं तो कम से कम 23 बन ही जाएंगे। भले सिंधिया इस बात से इंकार करे कि उनका इरादा कभी भी मुख्यमंत्री बनें का नहीं था लेकिन सवाल यहीं है कि तब वो कांग्रेस भी रह सकते हैं लेकिन अलग बात है कि सिंधिया को अब भी यहीं लग रहा होगा कि आज नहीं तो कल मुख्यमंत्री बन ही जाएंगे।