Who is Pappu Singh?: बिहार की राजनीति में आज एक नया मोड़ आ गया। लंबे समय से चर्चाओं में बने रहे प्रशांत किशोर ने आखिरकार अपनी पार्टी जन सुराज (Jan Suraj Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष (National President) का ऐलान कर दिया। और ये जिम्मेदारी उन्होंने सौंपी है पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को।
Who is Pappu Singh?
अब सवाल उठता है — क्या ये कोई आम नियुक्ति है? बिल्कुल नहीं। इसके पीछे बहुत ही गहरी political strategy छिपी है, जिसे समझने के लिए बिहार की राजनीति और जातीय समीकरणों की नब्ज पकड़नी होगी।
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कौन हैं पप्पू सिंह? (Who is Pappu Singh?)
पप्पू सिंह का नाम बिहार की राजनीति में नया नहीं है, लेकिन अब जो भूमिका उन्हें मिली है, वो पूरी तरह से नई है। पूर्णिया के रहने वाले पप्पू सिंह राजपूत समुदाय से आते हैं। ज़मींदार परिवार, राजनीतिक विरासत, और पुराने संसदीय अनुभव के साथ-साथ, उनकी पृष्ठभूमि बहुत प्रभावशाली रही है।
- 2004 से 2014 तक पूर्णिया से सांसद रहे (BJP टिकट पर)
- उनकी मां माधुरी सिंह 1980 और 1984 में कांग्रेस सांसद रहीं
- उनके भाई एन.के. सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष और JDU के नेता रहे
- बहन श्यामा सिंह औरंगाबाद से सांसद रहीं
- बहनोई निखिल कुमार राज्यपाल और सांसद रह चुके हैं
यानि पूरे परिवार की राजनीति में गहरी जड़ें रही हैं।
अब असली सवाल ये है कि प्रशांत किशोर ने अध्यक्ष पद के लिए पप्पू सिंह को ही क्यों चुना?
इसका जवाब एक लाइन में है
राजनीति में हर मोहरा सोच समझकर चलता है, और जब सियासत में जाति फैक्टर हो, तो चाल और भी गहरी हो जाती है। एक सीधा अर्थ है कि बिहार अपरकास्ट परंपरा तौर पहले कांग्रेस साथ बनी लेकिन जैसे ही 1990 दौर में बिहार लालू प्रसाद यादव का उदय हुआ देश में मंडल और कमंडल की राजनीति शुरू उसके बाद ये अगड़ी जातियों का वोट बैंक कांग्रेस शिफ्ट होकर सीधे तौर भाजपा साथ चली गई, जो कि इस पहले केवल बनिया पार्टी के तौर जानी जाती थी। हालांकि राम मंदिर आंदोलन दौर और मंडल के वक्त कमंडल लाल कृष्ण आडवाणी के राजनीति और उनके नेतृत्व भाजपा के छवि बदल दिया और अब धीरे धीरे अगड़ी जातियों का वोट बैंक कांग्रेस शिफ्ट होकर देशभर भाजपा साथ जानीं लगी।
बिहार के जातीय सर्वे के अनुसार राजपूत (Rajput community) की आबादी लगभग 3.45% है। पहले यह संख्या 5% से ऊपर मानी जाती थी। 2020 के विधानसभा चुनावों में कुल 28 राजपूत विधायक चुने गए थे, जिनमें 17 BJP से थे।
हालांकि हाल के लोकसभा चुनावों दौरान भाजपा के नेता बयान के बाद देशभर राजपूतों की नाराज़गी साफ आई जिसकी कीमत भाजपा चुकाना पड़ा और उसका असर बिहार में भी रहा।।
- औरंगाबाद जैसे परंपरागत राजपूत सीट से बीजेपी हार गई
- आर.के. सिंह आरा से हार गए
- पवन सिंह प्रकरण ने भी इस नाराज़गी को हवा दी
- बक्सर सीट पर राजपूतों ने RJD को वोट कर चौंका दिया
इतना ही नहीं, मोदी कैबिनेट में इस बार कोई भी राजपूत चेहरा बिहार से शामिल नहीं है। ये सब बातें बताती हैं कि राजपूत समुदाय में BJP के प्रति नाराज़गी की भावना है। ऐसे में प्रशांत किशोर ने शायद ये समझ समझ गये और इस वोट बैंक में सेंध लगाई जाए, तो Jan Suraj Party को एक बड़ा सामाजिक आधार मिल सकता है। इसलिए प्रशांत किशोर ने उदय सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर बड़ा मैसेज दे दिए, वैसे भी प्रशांत किशोर पुर्व रणनीतिककार रहें उन से बेहतर भला इस राजनीति कौन समझता है।
उदाहरण के तौर पर सोचिए:
मान लीजिए एक गांव में पंचायती चुनाव हो रहा हो और वहां के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित परिवार के बुज़ुर्ग को अचानक कोई नई पार्टी का चेहरा बना दे, तो गांव वालों को क्या लगेगा?
“अरे ई पार्टी त ठेकेदारी वाला नइखे, इ त सही में समाज के लोगन के जोड़े के सोच रहल बा।”
बस यही सोच प्रशांत किशोर जन सुराज के लिए फैलाना चाहते हैं।
जन सुराज की आगे की रणनीति क्या हो सकती है?
- Upper caste symbolic politics के सहारे Lower caste को जोड़ना
- प्रशांत किशोर खुद जनता के बीच, पप्पू सिंह संगठन में चेहरा
- BJP के परंपरागत वोटर्स को एक “सज्जन और समझदार” विकल्प देना।
- RJD और JDU से दूरी बनाकर “थर्ड फ्रंट” का विकल्प बनना।।