चिराग पासवान की शर्त: सीटों की संख्या नहीं, जीत की गारंटी मायने रखती है

Shubhra Sharma
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चिराग पासवान
चिराग पासवान

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में सीट बंटवारे को लेकर हलचल तेज हो गई है। राजनीति में चुनाव से पहले सीट शेयरिंग हमेशा से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है, क्योंकि हर दल चाहता है कि उसे अपनी ताकत और जनाधार के हिसाब से ज्यादा सीटें मिलें। इस बार भी यही हो रहा है। जेडीयू, बीजेपी, एलजेपी (रामविलास), जीतन राम मांझी की हम पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम के बीच बातचीत का दौर जारी है।

चिराग पासवान
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इसी बीच केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने सीट बंटवारे को लेकर एक ऐसी शर्त रख दी है जिसने एनडीए के समीकरण को और दिलचस्प बना दिया है। चिराग ने साफ कहा कि उनके लिए सीटों की संख्या का कोई खास महत्व नहीं है, बल्कि मायने उन सीटों का है जिन्हें वे जीतकर ला सकते हैं।

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चिराग का साफ संदेश

एक यूट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में चिराग पासवान ने कहा:
“मुझे पता है कि कितनी सीटों पर लड़ना है, लेकिन असल मायने उन सीटों का है जिन्हें मैं 100 प्रतिशत जीतकर गठबंधन को दे सकूं। मेरे लिए दो सीटें कम-ज्यादा मायने नहीं रखतीं।”

इस बयान से उन्होंने यह संकेत दे दिया कि वे सीटों की गिनती से ज्यादा क्वालिटी पर ध्यान देंगे। यानी वे ऐसी सीटों की मांग करेंगे जिन पर उनकी पार्टी का संगठन मजबूत है और जहाँ वे जीत दर्ज कर सकते हैं।


100 प्रतिशत स्ट्राइक रेट पर भरोसा

चिराग पासवान बार-बार 2024 लोकसभा चुनाव का हवाला देते हैं। उस चुनाव में उनकी पार्टी को 5 सीटें मिली थीं और खास बात यह रही कि सभी 5 सीटों पर जीत दर्ज हुई थी। खुद चिराग भी विजयी हुए थे। यही वजह है कि वे विधानसभा चुनाव में भी “शत-प्रतिशत स्ट्राइक रेट” की बात कर रहे हैं।

उन्होंने कहा—
“लोकसभा में 100 परसेंट था… विधानसभा में भी वही स्ट्राइक रेट रखना चाहता हूं।”

इस बयान का मतलब साफ है कि चिराग खुद को सिर्फ संख्या की राजनीति में सीमित नहीं करना चाहते, बल्कि गठबंधन को यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि वे जिस सीट पर लड़ेंगे, वहाँ से जीतकर ही लौटेंगे।


लोकसभा चुनाव का संदर्भ

2024 लोकसभा चुनाव चिराग पासवान के लिए बड़ा राजनीतिक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ था। कई राजनीतिक जानकार मानते थे कि वे अकेले लड़कर अपनी पहचान बनाएंगे या फिर सीमित भूमिका निभाएँगे। लेकिन 5 सीटों पर मिली जीत ने उन्हें न सिर्फ एनडीए के भीतर मजबूत किया, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एक नए नेता के रूप में स्थापित किया।

लोकसभा चुनाव में 100 प्रतिशत स्ट्राइक रेट ने चिराग को अब विधानसभा चुनाव में भी आत्मविश्वास दिया है। यही कारण है कि वे बार-बार इस उदाहरण का हवाला देकर अपनी सीटों की मांग को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।


एनडीए में सीट शेयरिंग की चर्चा

बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों पर चुनाव होना है। एनडीए के पाँच घटक दलों के बीच सीट बंटवारे की बातचीत चल रही है। सूत्रों के अनुसार जो फॉर्मूला बन रहा है, उसमें—

  • जेडीयू को 102-103 सीटें,

  • बीजेपी को 101-102 सीटें,

  • एलजेपी (रामविलास) को 25-28 सीटें,

  • हम पार्टी को 6-7 सीटें,

  • आरएलएम को 4-5 सीटें मिल सकती हैं।

हालाँकि, अभी इस पर अंतिम मुहर लगनी बाकी है। चिराग की शर्त को देखते हुए मुमकिन है कि बातचीत में और फेरबदल हो।


शाह-नीतीश मुलाकात और सियासी हलचल

18 सितंबर 2025 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात ने सीट शेयरिंग की अटकलों को और तेज कर दिया है। माना जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद एनडीए के भीतर सीट बंटवारे पर अंतिम फैसला जल्द सामने आ सकता है।

लेकिन चिराग की यह शर्त कि उनके लिए संख्या नहीं, बल्कि “जीत की गारंटी” मायने रखती है, एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।


चिराग की रणनीति: कम सीट, पक्की जीत

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान की रणनीति काफी सोच-समझकर बनाई गई है। वे जानते हैं कि उनकी पार्टी पूरे राज्य में समान रूप से मजबूत नहीं है। इसलिए यदि वे ज्यादा सीटें मांगेंगे और बाद में हारेंगे तो उनकी साख पर असर पड़ेगा। इसके बजाय वे कम सीटों पर लड़कर शत-प्रतिशत जीत हासिल करना चाहते हैं।

इस रणनीति से उन्हें दो फायदे होंगे—

  1. साख और विश्वसनीयता बनी रहेगी – क्योंकि वे जहाँ लड़ेंगे, वहाँ जीतेंगे।

  2. भविष्य की राजनीति मजबूत होगी – वे एनडीए के भीतर अपनी स्थिति को “जीत की मशीन” के रूप में स्थापित कर पाएँगे।


एनडीए और महागठबंधन पर असर

चिराग की शर्त से एनडीए की रणनीति थोड़ी पेचीदा हो गई है। जेडीयू और बीजेपी पहले से ही बराबर-बराबर सीटें चाहती हैं। ऐसे में एलजेपी (रामविलास) की मांग और शर्त से समीकरण बिगड़ सकते हैं।

वहीं, विपक्षी महागठबंधन इस स्थिति पर नजर रखे हुए है। अगर एनडीए में आंतरिक खींचतान बढ़ी तो महागठबंधन को इसका फायदा मिल सकता है। दूसरी ओर, अगर एनडीए चिराग की शर्त मान लेता है और वे 100 प्रतिशत स्ट्राइक रेट दोहराते हैं, तो गठबंधन और मजबूत हो सकता है।


निष्कर्ष

चिराग पासवान की यह शर्त कि उनके लिए “संख्या नहीं, बल्कि जीत की गारंटी वाली सीटें मायने रखती हैं” बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की रणनीति को नया मोड़ दे सकती है। जहाँ छोटे दल अपनी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं चिराग पासवान खुद को “विजयी नेता” के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।

2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी सफलता ने उन्हें आत्मविश्वास दिया है और अब वे चाहते हैं कि विधानसभा में भी वही रिकॉर्ड कायम हो। सवाल यह है कि क्या एनडीए उनकी इस शर्त को मानकर उन्हें मनपसंद सीटें देगा, या फिर गठबंधन के भीतर खींचतान बढ़ेगी?

जो भी हो, इतना तय है कि चिराग पासवान इस बार भी बिहार की राजनीति में चर्चाओं के केंद्र बने रहेंगे और उनकी रणनीति चुनावी माहौल को काफी प्रभावित करेगी।

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