एडविना माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू का रिश्ता, क्या था दोनो के बीच

Shubhra Sharma
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एडविना माउंटबेटन
एडविना माउंटबेटन

एडविना माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू का रिश्ता इतिहास के उन अध्यायों में से है, जो लोगों को हमेशा आकर्षित करता रहा है। यह सिर्फ एक friendship या emotional connection से ज्यादा था। दोनों के बीच mutual respect, admiration, और गहरी understanding का एक अनोखा बंधन था। आइए इस रिश्ते को और विस्तार से समझते हैं।

एडविना माउंटबेटन
एडविना माउंटबेटन

एडविना माउंटबेटन कौन थीं?

एडविना माउंटबेटन ब्रिटेन के शाही परिवार से जुड़ी थीं। वह एक bold, independent और socially active महिला थीं। 1947 में उनके पति, लॉर्ड लुइस माउंटबेटन, भारत के आखिरी वायसराय बने। इस दौरान एडविना ने न केवल भारत की राजनीतिक स्थिति को समझा, बल्कि सामाजिक और मानवीय कार्यों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।

उनकी यही qualities पंडित नेहरू को आकर्षित करती थीं। एडविना का humanitarian work, उनकी intellectual depth और उनका open-minded नजरिया उन्हें खास बनाता था।


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नेहरू और एडविना की पहली मुलाकात

नेहरू और एडविना पहली बार 1947 में मिले, जब भारत स्वतंत्रता और विभाजन के कठिन दौर से गुजर रहा था। विभाजन के समय हुई हिंसा और लोगों के पलायन से दोनों ही बहुत प्रभावित थे। इसी दौरान उनकी बातचीत गहरी होने लगी।

नेहरू की intellectual brilliance और एडविना की warmth ने दोनों को एक दूसरे के करीब ला दिया। एडविना ने नेहरू को एक visionary और compassionate नेता के रूप में देखा, जबकि नेहरू ने एडविना की strength और sensitivity की सराहना की।

दोस्ती से गहरे रिश्ते तक

नेहरू और एडविना का रिश्ता समय के साथ गहराता गया। दोनों के बीच केवल political discussions ही नहीं होती थीं, बल्कि personal और philosophical बातें भी होती थीं।

  1. Mutual admiration:

एडविना नेहरू की simplicity, eloquence और vision की प्रशंसा करती थीं। वहीं, नेहरू एडविना की understanding nature, charm और humanitarian दृष्टिकोण से प्रभावित थे।

  1. Letters का माध्यम:

उनके रिश्ते की गहराई उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों पत्रों में झलकती है। ये पत्र न केवल उनके विचारों और भावनाओं को व्यक्त करते हैं, बल्कि उनके रिश्ते की गहराई और समझ को भी दिखाते हैं।

क्या यह रिश्ता प्रेम था?

नेहरू और एडविना के रिश्ते को लेकर हमेशा यह सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ एक गहरी दोस्ती थी या उससे भी ज्यादा।

Emotional Bond:

इतिहासकारों का मानना है कि उनका रिश्ता primarily emotional और intellectual connection पर आधारित था। हालांकि, इसे physical relationship मानने का कोई प्रमाण नहीं है।

Public Perception:

इस रिश्ते को लेकर कई अफवाहें भी फैलीं, लेकिन नेहरू और एडविना ने कभी इसे publicly address नहीं किया। उनका रिश्ता हमेशा dignity और respect के दायरे में रहा।

लॉर्ड माउंटबेटन का नजरिया

लॉर्ड माउंटबेटन ने इस रिश्ते को maturity और understanding के साथ स्वीकार किया। वह जानते थे कि एडविना और नेहरू के बीच एक गहरी emotional connection है, लेकिन उन्होंने इसे गलत तरीके से नहीं लिया।

माउंटबेटन ने एक बार कहा था, “I believe Edwina needed someone like Nehru in her life, and I was okay with it.” यह उनके रिश्ते की complexity और माउंटबेटन की उदारता को दर्शाता है।

एडविना और नेहरू के पत्रों की भूमिका

नेहरू और एडविना के बीच पत्र-व्यवहार उनके रिश्ते का सबसे बड़ा प्रमाण है। 1947 से लेकर एडविना की मृत्यु (1960) तक, उन्होंने एक-दूसरे को कई पत्र लिखे। इन पत्रों में उनकी mutual respect, affection और shared thoughts की झलक मिलती है।

कई पत्रों में एडविना ने नेहरू के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। वहीं, नेहरू ने भी एडविना के प्रति अपनी गहरी प्रशंसा और स्नेह का इज़हार किया।

एडविना की मृत्यु और नेहरू की प्रतिक्रिया

1960 में एडविना का निधन हो गया। वह एक यात्रा के दौरान अपने कमरे में मृत पाई गईं। उनकी मृत्यु से नेहरू बेहद दुखी हुए।

माउंटबेटन ने नेहरू को एडविना का आखिरी पत्र भेजा, जिसमें एडविना ने लिखा था:
“You have been and will always remain a very special part of my life.”

यह पत्र नेहरू के लिए बेहद भावुक और महत्वपूर्ण था।

एडविना माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू का रिश्ता एक ऐसी कहानी है, जो दोस्ती, सम्मान और भावनात्मक गहराई का प्रतीक है। यह रिश्ता न केवल उनके निजी जीवन का हिस्सा था, बल्कि उस समय की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों पर भी प्रभाव डालता था।

यह कहना मुश्किल है कि यह सिर्फ एक दोस्ती थी या उससे अधिक, लेकिन यह स्पष्ट है कि दोनों ने एक-दूसरे के जीवन को गहराई से प्रभावित किया। उनका रिश्ता आज भी लोगों के लिए एक प्रेरणा और चर्चा का विषय बना हुआ है।

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