2014 में जब नरेंद्र मोदी ने “अच्छे दिन” का वादा करते हुए सत्ता संभाली, तब देशवासियों को उम्मीद थी कि भारत आर्थिक रूप से मजबूत होगा। उस समय 1 डॉलर की कीमत 58 रुपये थी। आज, एक दशक बाद, वही रुपया 87 के करीब पहुंचने को है। यह गिरावट केवल मुद्रा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकार की आर्थिक नीतियों और प्रबंधन की विफलताओं को भी उजागर करती है। क्या यह रुपये की कमजोरी का संकेत है या सरकार की नीति-निर्माण की दिशा में बड़े सवाल खड़े करता है? इस लेख में हम मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर नजर डालेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि “अच्छे दिन” के वादे रुपये की कीमत पर कैसे भारी पड़े।
डॉलर
पिछले एक दशक में भारतीय रुपये की अमेरिकी डॉलर के मुकाबले निरंतर गिरावट ने देश की आर्थिक स्थिरता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े किए हैं। 16 मई 2014 को एक डॉलर की कीमत 58.58 रुपये थी, जो 27 दिसंबर 2024 को बढ़कर 85.59 रुपये के सर्वकालिक निम्न स्तर पर पहुंच गई।
रुपये की गिरावट के प्रमुख कारण:
- अमेरिकी डॉलर की मजबूती: वैश्विक बाजार में डॉलर की मजबूती ने अन्य मुद्राओं पर दबाव बढ़ाया है, जिससे रुपया भी अछूता नहीं रहा।
- अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिस्थितियां: अमेरिका की मजबूत आर्थिक स्थिति और उच्च बॉन्ड यील्ड ने निवेशकों को डॉलर की ओर आकर्षित किया, जिससे रुपये पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
- घरेलू आर्थिक चुनौतियां: भारत में बढ़ती मुद्रास्फीति, व्यापार घाटा और धीमी आर्थिक वृद्धि ने रुपये की कमजोरी में योगदान दिया है।
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मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2014 में सत्ता संभाली, लेकिन रुपये की गिरती स्थिति उनकी आर्थिक नीतियों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है।
- विमुद्रीकरण (नोटबंदी): 2016 में लागू की गई इस नीति का उद्देश्य काले धन पर अंकुश लगाना था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियों में ठहराव और रोजगार हानि हुई।
- जीएसटी का कार्यान्वयन: वस्तु एवं सेवा कर (GST) की जटिल संरचना और अचानक कार्यान्वयन ने छोटे व्यवसायों और व्यापारियों के लिए चुनौतियां पैदा कीं, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित हुआ।
- कृषि क्षेत्र की उपेक्षा: किसानों की समस्याओं को पर्याप्त महत्व न देने और कृषि सुधारों में देरी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर किया, जिससे समग्र आर्थिक विकास पर असर पड़ा।
- बढ़ती बेरोजगारी: सरकार की रोजगार सृजन नीतियों की कमी के कारण युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है, जिससे घरेलू मांग और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हुई।
आर्थिक विशेषज्ञों की राय:
पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए कहा है कि भारत की वृद्धि दर टिकाऊ नहीं है और लोकप्रिय नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था को लातिन अमेरिकी देशों जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।