शिक्षित नेताजी सच्चे या जनता झूठी
“क्या सच में जनता पढ़ें लिखें और श्रेष्ठ व्यक्ति को खुद का नेतृत्वकर्ता के रूप में देखना चाहती है आइये इसे बारिकी से समझा जाएं !!” आज जनता को पढ़ें लिखे नहीं खुद के जैसी मानसिकता वाले नेतृत्वकर्तापसंद हैं !!
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शिक्षित नेताजी
- जनता को खुद के जैसा गरीब दिखने वाला चाहिए
- जनता को खुद कि तरह शिक्षित व ज्यादा पढ़ा लिखा न चाहिए
- जनता को खुद कि बोलीं बोलने वाला चाहिए
- जनता को खुद कि जात वाला नेता पसंद चाहिए
- जनता उन्हीं को वोट देंगी जो उनके जैसों को समझनें वाले हो
“क्या भ्रष्टाचार का केवल नेता जिम्मेदार हैं ??”
अजी, घंटा मेरा …. अभी के समय नेतागिरी एक व्यवसाय भर बना हुआ हैं चुनाव के समय नेता खुद कि पूँजी लगाते हैं फिर चुनाव जीतने के बाद में व्यवसाय शुरु कर देतें हैं…..
जनता को क्यों चुनाव के समय ही शाम के वक्त नेताजी के पैसों कि जरुरत पड़ जाती हैं जो हाथ फैलाएं नेताजी के पास चलें आते हैं सौ रुपये माँगने और नेताजी को पता हैं कि ये सौ रूपये ही मेरे अगले 5 वर्षों के भविष्य को फिक्स
डिपॉजिट कि भांति Secure कर देगा !!
नेताजी घर घर जाकर पैसे बांटते हैं जनता न लें…. हैं औकात कि नेताजी द्वारा नगद नारायण को वापस घुमा दें आखिर घर के दरवाजे पर मुफ्त कि लक्ष्मी को भला कौन घुमायेगा सो, रुपये हाथों में ले कर चुपचाप मुट्ठी बंद कर घर के
भीतर चले जाते हैं।
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गलती किसकी नेताजी कि या जनता कि जो खुद पैसे लेकर वोट देते हैं फिर
बाद में नेताजी को गालियां देते हैं आखिर जिसनें भी खुद कि पूँजी फंसा डाली हो तो उसे तो मुनाफा चाहिए ही फिर से चुनाव में पैसे बांटे जायेंगे और फिर से वहीं गालियां देने वाले लोग हाथ पसाड़े नेताजी के पैसे लेंगे।
ये हैं सत्यता जो हजम न होती हर सिक्के के दो पहलु होते हैं यें दुसरी पहलु जनता कि हैं यदि अच्छा पढ़ा लिखा गरीब नेता बनने जाएं तो जनता उसे कंजूस और अंग्रेज कहकर धुतकार देते हैं सच हमेशा ही “कड़वा ” होता हैं
जिसे जान लोग तिलमिला उठते हैं।
धन्यवाद,
लेखक:करण पोद्दार