बिहार की राजनीति में बयानबाज़ी और आरोप-प्रत्यारोप कोई नई बात नहीं है। चुनावी मौसम नजदीक आते ही नेताओं के बीच शब्दों की जंग और तेज़ हो जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया पूर्णिया दौरे ने भी कुछ ऐसा ही माहौल पैदा किया। इस दौरे पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ये लोग “जुमला करने वाले हैं और बिहार में सिर्फ जुमला दिवस मनाने आए हैं।” उनके इस तंज के बाद जनता दल यूनाइटेड (JDU) आग बबूला हो गई और लालू पर सीधा पलटवार किया।
लालू का बयान और सियासी हलचल
लालू प्रसाद यादव हमेशा से अपनी बेबाक शैली के लिए जाने जाते हैं। वे सियासी मंच पर तंज कसने और मज़ाकिया लहजे में विपक्ष को घेरने के लिए मशहूर हैं। लेकिन इस बार उनका “जुमला दिवस” वाला कटाक्ष सीधा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर था। जैसे ही यह बयान सार्वजनिक हुआ, बिहार की राजनीति में हलचल मच गई। सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक इस बयान पर चर्चा छिड़ गई।
राजद के समर्थकों ने इसे एक सटीक हमला बताया, जबकि जदयू और बीजेपी खेमे ने इसे अनावश्यक और गैर-जिम्मेदाराना भाषा कहा।
JDU का पलटवार: “ऐसी भाषा बोलेंगे तो दिक्कत होगी”
जदयू के वरिष्ठ नेता रामप्रीत मंडल ने लालू यादव को कड़ी चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि लालू जी अब बिहार की राजनीति के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं, इसलिए उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी भाषा पर संयम रखें। अगर वे इस तरह की शब्दावली का इस्तेमाल करेंगे, तो उन्हें जनता गंभीरता से नहीं लेगी।
रामप्रीत मंडल ने आगे कहा कि लालू प्रसाद यादव खुद सजायाफ्ता हैं, ऐसे में उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे गरिमा बनाए रखें। अगर वे लगातार कटाक्ष और तीखी भाषा का इस्तेमाल करेंगे तो इससे उनकी राजनीतिक साख और कमजोर होगी।
लालू परिवार को भी घेरा
जदयू नेता यहीं नहीं रुके। उन्होंने लालू परिवार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। मंडल ने कहा कि आज की तारीख में पूरा लालू परिवार राजनीति कर रहा है, लेकिन जनता के हित में कोई ठोस काम नहीं दिख रहा। उनके मुताबिक लालू यादव के दोनों बेटे अलग-अलग दिशा में राजनीति कर रहे हैं और जनता इस स्थिति को समझ नहीं पा रही है।
उन्होंने यहां तक कह दिया कि लालू यादव के एक बेटे की “बिहार अधिकार यात्रा” भी सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए है, न कि जनता की भलाई के लिए।
“अब आराम करें लालू यादव”
रामप्रीत मंडल का सबसे सख्त बयान यही रहा कि लालू यादव को अब राजनीति से दूर रहकर आराम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में लालू परिवार जो भी कर रहा है, वह जनता के लिए नहीं बल्कि केवल अपने निजी राजनीतिक हितों के लिए है। अगर वे इसी तरह की भाषा और रणनीति अपनाते रहे, तो जनता उन्हें नज़रअंदाज़ कर देगी।
राजनीतिक मायने
यह विवाद महज़ शब्दों का टकराव नहीं है। इसके कई गहरे राजनीतिक मायने हैं:
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चुनावी तैयारी – 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में हर पार्टी जनता का ध्यान खींचने के लिए नए-नए मुद्दे और बयान सामने ला रही है। लालू का “जुमला दिवस” कहना सीधा सत्ता पक्ष पर सवाल उठाने का तरीका था।
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छवि की जंग – लालू यादव लंबे समय से बिहार की राजनीति के बड़े चेहरे रहे हैं। लेकिन सजायाफ्ता होने और स्वास्थ्य कारणों से सक्रिय राजनीति से दूर रहने के कारण उनकी छवि पहले जैसी मजबूत नहीं है। ऐसे में जदयू उन पर दबाव बना रही है कि वे अब गंभीरता और संयम दिखाएँ।
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जनता की अपेक्षाएँ – आज के समय में बिहार की जनता केवल कटाक्ष और भाषणों से प्रभावित नहीं होती। लोग रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी बुनियादी जरूरतों पर ठोस काम देखना चाहते हैं। अगर नेता केवल बयानबाज़ी करेंगे तो जनता उन्हें महत्व नहीं देगी।
लालू की शैली और JDU की रणनीति
लालू प्रसाद यादव हमेशा से अपने तंज और व्यंग्य के लिए चर्चित रहे हैं। वे भीड़ को हंसाते-हंसाते गंभीर संदेश दे देते हैं। यही उनकी ताक़त रही है। लेकिन मौजूदा समय में उनकी वही शैली कई बार उनके खिलाफ जाती दिख रही है।
दूसरी तरफ जदयू की रणनीति यह है कि वह लालू परिवार की छवि को “निजी स्वार्थी” और “जनता के हितों से दूर” दिखाए। यही कारण है कि उन्होंने लालू के बयान पर इतना तीखा पलटवार किया।
जनता पर असर
बिहार की राजनीति में जनता का मूड अक्सर नेताओं की जुबान से प्रभावित होता है। लालू यादव के समर्थक उनके हर बयान को मज़ेदार और सटीक मानते हैं, वहीं विरोधी दल इसे गैर-जिम्मेदाराना बताते हैं।
लेकिन इस पूरे विवाद का असली असर आने वाले चुनावों में दिखेगा। अगर जनता को लगेगा कि लालू सिर्फ कटाक्ष कर रहे हैं और ठोस विकल्प नहीं दे रहे, तो यह उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है। वहीं अगर मोदी सरकार और जदयू के कामकाज पर असंतोष रहा, तो लालू का यही अंदाज़ जनता को भा सकता है।
निष्कर्ष
लालू यादव और जदयू के बीच यह शब्दों की लड़ाई बिहार की राजनीति की वास्तविक तस्वीर पेश करती है। यहाँ मुद्दों से ज्यादा बयानबाज़ी सुर्खियाँ बटोरती है।
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लालू का “जुमला दिवस” कहना एक सियासी तीर था।
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जदयू का पलटवार दिखाता है कि सत्ता पक्ष इस तरह की बातों को हल्के में लेने के मूड में नहीं है।
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जनता अब केवल भाषणों से नहीं, बल्कि काम और नतीजों से प्रभावित होगी।
इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि आने वाले समय में बिहार की राजनीति और गरमा सकती है। बयानबाज़ी और कटाक्ष चलते रहेंगे, लेकिन अंततः जनता तय करेगी कि किसकी भाषा और किसका काम उन्हें ज्यादा भाता है।

