जातीय समीकरणों से परे हटी RJD: तेजस्वी यादव का रुख बिहार की राजनीति में बदलाव का संकेत

Shubhra Sharma
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बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों और वोट बैंक की रणनीतियों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की पहचान लंबे समय तक यादव-मुस्लिम समीकरण पर आधारित रही, जिसने पार्टी को कई बार सत्ता तक पहुँचाया। लेकिन समय बदला, पीढ़ी बदली और अब नई राजनीतिक सोच सामने आने लगी है। RJD के युवा नेता तेजस्वी यादव ने हाल ही में स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे नई राजनीति करने आए हैं—एक ऐसी राजनीति जिसमें जाति और धर्म नहीं, बल्कि विकास, समृद्धि और उद्योगों की बातें हों। यह बयान न सिर्फ RJD की रणनीति में बदलाव का संकेत है, बल्कि पूरे बिहार की राजनीति में भी एक नए दौर की शुरुआत का इशारा देता है।


RJD की पुरानी राजनीति और जातीय समीकरण

90 के दशक से लेकर 2010 तक बिहार की राजनीति का केंद्रबिंदु जाति ही रही। लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में RJD ने यादव और मुस्लिम वोट बैंक को मजबूती से साधा। “MY समीकरण” (Muslim-Yadav) RJD की चुनावी जीत का सबसे बड़ा आधार रहा। लेकिन इस राजनीति की एक सीमा भी थी—विकास, उद्योग, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे पीछे छूटते गए। यही कारण रहा कि समय के साथ NDA और खासकर भाजपा-जेडीयू गठबंधन ने इस कमी का फायदा उठाया और बिहार में अपनी मजबूत पकड़ बनाई।


NDA के दौर में जातीय राजनीति की पकड़ ढीली हुई

नीतीश कुमार और भाजपा के नेतृत्व में NDA ने सामाजिक न्याय के साथ-साथ विकास का एजेंडा आगे रखा। सड़क, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य पर काम करने की वजह से जातीय राजनीति का असर धीरे-धीरे कम होने लगा। यही वजह रही कि यादव-मुस्लिम समीकरण पर टिके रहने वाली RJD को लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस माहौल ने तेजस्वी यादव को मजबूर किया कि वे अपनी राजनीति का रुख बदलें और नए मुद्दों के साथ जनता के सामने जाएँ।


तेजस्वी यादव का नया ऐलान

तेजस्वी यादव ने साफ कहा है कि वे जाति और धर्म की राजनीति से हटकर नई राजनीति करना चाहते हैं। उनका कहना है:
“मैं नई राजनीति करने आया हूँ, जहां जाति और धर्म की कोई जगह नहीं होगी। यहां विकास, सुधार, समृद्धि और उद्योगों की बातें होंगी।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे बिहार की प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति निवेश को बढ़ाना चाहते हैं। उनका मुख्य फोकस युवाओं और किसानों पर है, जिन्हें वे बिहार का भविष्य मानते हैं।


विकास और सुधार पर फोकस

तेजस्वी यादव ने अपनी रैलियों और “बिहार अधिकार यात्रा” में रोजगार, उद्योग, शिक्षा और किसानों के मुद्दे प्रमुखता से उठाए। उनका कहना है कि बिहार को नई दिशा देने के लिए आर्थिक क्रांति जरूरी है।

  • युवाओं के लिए: नौकरी, स्टार्टअप और उद्योगों के अवसर बढ़ाना।

  • किसानों के लिए: बेहतर MSP, सिंचाई की सुविधा और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल।

  • उद्योगों के लिए: निवेश आकर्षित करने और बेरोजगारी कम करने पर ध्यान।


नीतीश कुमार पर हमला

तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार अब युवाओं से कट चुके हैं। वे “रिटायर्ड अफसरों” और “थके हुए नेताओं” से घिरे हैं, इसलिए वे न तो युवाओं की समस्याओं को समझ पा रहे हैं और न ही उनके लिए सही नीतियां बना पा रहे हैं।

तेजस्वी ने सोशल मीडिया (X) पर लिखा:
“बिहार के युवा बदलाव, अधिकारों और आर्थिक क्रांति के लिए एकजुट हो गए हैं। एक मुख्यमंत्री जो युवाओं की आकांक्षाओं से अवगत नहीं है, वह उनके लिए फायदेमंद नीतियां नहीं बना सकता।”


करो या मरो की लड़ाई

तेजस्वी यादव ने इस चुनाव को युवाओं और किसानों के लिए “करो या मरो की लड़ाई” करार दिया। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई किसान के पसीने, मजदूर की मेहनत और बेरोजगार युवाओं के भविष्य की है। वे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक बिहार को जीत नहीं दिला देते।


युवाओं की भूमिका और बदलती प्राथमिकताएँ

बिहार की 2025 की राजनीति में युवा मतदाता सबसे अहम भूमिका निभाने वाले हैं।

  • आज का युवा जाति और धर्म की राजनीति से ज्यादा रोजगार, शिक्षा और अवसर चाहता है।

  • RJD के लिए यह बदलाव इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अगर पार्टी सिर्फ “MY समीकरण” पर टिकी रही तो नए मतदाताओं का भरोसा खो सकती है।

  • कांग्रेस जैसी सहयोगी पार्टी पहले ही जाति और धर्म की बातों से दूर रहती है। ऐसे में RJD का भी एजेंडा बदलना राजनीतिक मजबूरी के साथ-साथ रणनीति भी है।


महागठबंधन बनाम NDA

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुकाबला महागठबंधन (RJD + कांग्रेस) और NDA (BJP + JDU) के बीच होना तय है।

  • महागठबंधन की ताकत: विपक्षी वोटों का एकजुट होना, तेजस्वी का नया विजन और युवा ऊर्जा।

  • NDA की ताकत: नीतीश का प्रशासनिक अनुभव, भाजपा की संगठन क्षमता और विकास की छवि।

तेजस्वी का “नई राजनीति” का एजेंडा महागठबंधन के लिए नया narrative तैयार कर सकता है।


सवाल: बदलाव कितना असरदार होगा?

तेजस्वी यादव का एजेंडा कितना सफल होगा, यह आने वाले चुनाव तय करेंगे।

  • अगर युवा और किसान उनके साथ खड़े होते हैं तो यह बदलाव NDA की मजबूत पकड़ को चुनौती दे सकता है।

  • लेकिन अगर RJD के पुराने कार्यकर्ता इस नए एजेंडे को पूरी तरह नहीं अपनाते, तो भ्रम की स्थिति भी बन सकती है।

  • राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम लंबी राजनीति के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि आने वाले समय में जाति और धर्म से ज्यादा रोजगार और विकास निर्णायक मुद्दे होंगे।


निष्कर्ष

तेजस्वी यादव का जाति और धर्म से परे हटकर राजनीति करने का ऐलान बिहार की राजनीति में बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। RJD, जो अब तक यादव-मुस्लिम समीकरण पर टिकी थी, अब नई दिशा में बढ़ती दिख रही है। युवाओं और किसानों को केंद्र में रखकर विकास और समृद्धि की राजनीति करने का वादा एक नई उम्मीद जगाता है।

बिहार में हमेशा से जातीय समीकरणों का दबदबा रहा है, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। तेजस्वी यादव का रुख यह संकेत देता है कि आने वाला विधानसभा चुनाव सिर्फ जाति और धर्म पर नहीं, बल्कि विकास बनाम पिछड़ी राजनीति के एजेंडे पर लड़ा जाएगा।

सवाल यही है कि क्या बिहार का मतदाता इस बदलाव को स्वीकार करेगा और RJD को एक नया मौका देगा?

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