ram mandir ayodhya: मैं अयोध्याधाम हूँ , 1528 से 2024 तक के कहानी

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ram mandir ayodhya

ram mandir ayodhya: मैं अयोध्याधाम हूँ, किसी के लिए जन्म भूमि हूँ तो किसी के लिए कर्म भूमि… पर राम भक्तों से पूछो मैं क्या हूँ! मैं उनकी आस्था हूँ, मैं उनका इंतजार हूँ, मैं उनका सपना हूँ, मैं उनके प्रभू श्री राम का जन्मस्थान हूँ।

आज मैं आपको अपने बारे में बताने आयी हूँ, अपना इतिहास, अपना विवाद, अपनी हार और जीत सब कुछ। तो अपनी कुर्सी की पेटी बांध लीजिए, शुरू करते हैं।

ram mandir ayodhya

मैं भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश राज्य में सरयू नदी किनारे बस्ती हूँ। मेरी कहानी शुरू हुई थी त्रेता युग में जब यहाँ दशरथसुत भगवान श्री राम का जन्म हुआ। रघुनंदन के आने से मेरी शोभा अरबो खरबो गुना बड़ गई। मैंने उनका बालपन देखा, उनकी किशोरावस्था देखी। उनका विवाह देखा, उनका वन को जाना देखा, और लौटकर आना देखा। पहली दीवाली देखी।

फिर एक दिन श्री राम हम सबको छोड़कर हमेशा के लिए बैकुंठ धाम चले गए। मैं अयोध्या, अपने प्रभू के बिना सूनी हो गई। तब श्री राम के भक्तों ने उनके जन्म स्थल पर एक मंदिर बनवाया, राम मंदिर। और उस मंदिर की श्री राम की अगली 44 पीढ़ियों ने देख रेख करी। समय गुजरता गया और वह मंदिर जर्जर होता चला गया। मैं अपने प्रभू के मंदिर की यह हालत देखकर बहुत दुखी थी, मुझे प्रतीक्षा थी एक ऐसे राजा की जो इस मंदिर की मरम्मत कराए, और मेरी प्रतीक्षा का अंत हुआ आज से करीब 2000 साल पहले जब राजा विक्रमादित्य ने श्री राम मंदिर को फिर से बनवाया। मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा।

पर मुझे नहीं पता था कि मुझे और मेरे आराध्य के मंदिर को किसी की बुरी नज़र लगने वाली है। 1000 साल ही गुजरे थे कि देश भर में विभिन्न विदेशी राजाओं के आक्रमण होने लगे। मेरा मन घबरा रहा था कि मुझ तक कोई न पहुंचे मगर फिर आया वर्ष 1526 जब मुगल शासन की नींव रखने वाले राजा बाबर ने भारतवर्ष में कदम रखा। दो साल बाद उसकी सेना अयोध्या आयी और उन्होंने मेरे भगवान मेरे प्रभु मेरे श्री राम के मंदिर को तोड़ दिया। उस मन्दिर के साथ ही टूट गया मेरा दिल, मेरा सम्मान और मैं स्वयं।

वहाँ जहाँ श्री राम को पूजते रामभक्तों ने हजारों साल बिताए थे, वहाँ अब एक मस्जिद बन चुकी थी। और मस्जिद का नाम रखा गया उसी क्रूर राजा के नाम पर, बाबरी। उस मस्जिद को देखकर मैं दिन रात कुढ़ती रहती, पर भला कर भी क्या सकती थी। करना तो रामभक्तों को चाहिए था लेकिन वह भी अकबर और औरंगजेब जैसे शासकों के आगे कुछ न बोल सके।

वर्ष 1761 यानी 235 साल तक कोई हिंदू, कोई राम भक्त कुछ न बोल सका, लेकिन मुगलों का आखिरी राजा बहादुर शाह ज़फ़र एक कमजोर शासक था, और उसके ही समय से शुरू हुई राम मंदिर को वापस लेने की लड़ाई। वो पहली बार था जब लोगों ने मंदिर के लिए आवाज़ उठाई, इस आवाज़ को बहादुर शाह जफर ने तो नहीं सुना पर जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय ने सुन लिया। उन्होंने बहादुर शाह जफर से

बात करके बाबरी मस्जिद के प्रांगण में बनवाया राम चबूतरा। मुझे एक आस दिखी, ऐसा लगा कि शायद मेरे राम अब बहुत जल्द वापस आने वाले हैं।

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आम लोगों तक बात पहुंची, ज्यादा से ज्यादा लोग मंदिर के लिए आवाज़ उठाने लगे। निर्मोही अखाड़े के संतों ने डंके की चोट पर अपनी बात रखी कि बाबरी मस्जिद की जगह पर पहले राम मंदिर था। वही समय था जब मैंने पहली बार हिंदू-मुस्लिम के दंगे देखे। मेरा दिल दहल उठा। हालांकि उसी समय पहला स्वतंत्रता संग्राम हो गया और यह बात देश के स्वतंत्र होने तक दब गई।

स्वतंत्रता मिलने के बाद सन 1949 में कुछ लोगों ने बाबरी मस्जिद में श्री राम की मूर्ति रख दी। और उसके बाद विवाद इतना बड़ा कि यह मामला कोर्ट में पहुंच गया और बाबरी मस्जिद और राम चबूतरे पर ताला लगा दिया गया। देश भर में रथ यात्राएं निकाली गई, सभाएं हुई। राम मंदिर के लिए काम करने वालों को कारसेवक कहा गया और उन कारसेवकों ने मंदिर बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करी। इस दौरान कई दंगे हुए जिसमें सैकड़ों लोग मारे गये। पर अभी सबसे बड़ा दंगा होना बाकी था। जब 1992 में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिराई उसके बाद जो मैंने और मेरे साथ पूरे भारत ने देखा वह बहुत ख़तरनाक था। चारों तरफ चीखों की आवाज़ और कत्लेआम था। लेकिन आर्मी और पुलिस ने यह सब काबू किया। लगभग तीन और दशक लग गए यह साबित होने में कि यह भूमि, यह स्थान, यह जगह मेरे राम की है। 9 नम्बर 2019 वह ऐतिहासिक दिन था जब सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला किया कि यहाँ राम मंदिर ही बनेगा। उस दिन मैंने 500 साल बाद चैन की सांस ली। हालांकि अभी भी मंदिर बनना तो बाकी था लेकिन अब वो घड़ी भी आ गई है। 22 जनवरी 2024, यह वह दिन है जब मेरे प्रभु राम वापस आ रहे हैं।

क्या आप इस ऐतिहासिक दिन के साक्षी बनने आएंगे? मुझे आपका इंतजार रहेगा। आइएगा जरूर।

जय श्री राम।

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