बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस और आरजेडी के बीच आज दिल्ली में अहम बैठक होनी है, जिसमें महागठबंधन के अन्य घटक दल भी शामिल होंगे। सबसे बड़ी जिज्ञासा इस बात को लेकर है कि कांग्रेस की 70 सीटों की दावेदारी को तेजस्वी यादव मानेंगे या फिर आरजेडी अपने प्रस्तावित 40 सीटों पर अडिग रहेगी। इस बैठक का नतीजा महागठबंधन के भविष्य और चुनावी रणनीति दोनों को प्रभावित करेगा।
कांग्रेस की दावेदारी और आरजेडी की रणनीति
कांग्रेस इस बार बिहार में अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने के लिए 70 सीटों की मांग कर रही है। पार्टी का मानना है कि राहुल गांधी की सक्रियता और हाल की “वोटर अधिकार यात्रा” के कारण उसका जनाधार बढ़ा है।
दूसरी ओर, आरजेडी कांग्रेस को इतनी सीटें देने के मूड में नहीं है। आरजेडी चाहती है कि कांग्रेस को सिर्फ 40 सीटों के आसपास रखा जाए। तेजस्वी यादव का मानना है कि वास्तविक चुनावी मजबूती और जीतने की क्षमता के आधार पर सीटें तय होनी चाहिए, न कि सिर्फ दावेदारी पर।
पिछली बार का समीकरण
अगर 2020 के विधानसभा चुनाव पर नज़र डालें तो कांग्रेस को महागठबंधन में 70 सीटें मिली थीं, लेकिन पार्टी सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई।
इसके विपरीत, आरजेडी को 144 सीटें मिली थीं और उसने 75 सीटों पर जीत हासिल की थी। इन नतीजों ने कांग्रेस की कमजोर चुनावी स्थिति को उजागर कर दिया था। यही वजह है कि इस बार आरजेडी कांग्रेस को कम सीटें देने पर जोर दे रही है। तेजस्वी यादव का तर्क है कि कमजोर सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन पूरे गठबंधन को नुकसान पहुँचा सकता है।
राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा
इस बार कांग्रेस ने खुद को कमजोर साबित होने से बचाने के लिए ज़मीनी स्तर पर सक्रियता बढ़ा दी है। राहुल गांधी ने हाल ही में बिहार के कई जिलों में “वोटर अधिकार यात्रा” निकाली।
यह यात्रा उत्तर और दक्षिण बिहार के करीब एक दर्जन से अधिक जिलों से होकर गुज़री। इसका उद्देश्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उत्साहित करना और जनता के बीच यह संदेश देना था कि कांग्रेस केवल सहयोगी दल नहीं, बल्कि जनता के मुद्दों की आवाज़ भी है। इस सक्रियता से कांग्रेस की सीट दावेदारी और मजबूत हुई है।
CPI और अन्य दलों का रुख
महागठबंधन के भीतर वामदलों का भी महत्वपूर्ण रोल है। CPI महासचिव डी. राजा ने हाल ही में कहा था कि उनकी पार्टी इस बार पिछली बार से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी। उनका तर्क है कि CPI का गौरवशाली इतिहास है और यह बिहार में एक मास पार्टी के रूप में काम करती है।
वामदल चाहते हैं कि उन्हें “रिजनेबल” यानी उचित संख्या में सीटें दी जाएं। उनकी इस मांग से महागठबंधन की सीट शेयरिंग और जटिल हो जाती है। ऐसे में आरजेडी और कांग्रेस के बीच संतुलन बैठाना और भी चुनौतीपूर्ण होगा।
आज की बैठक का महत्व
आज दिल्ली में होने वाली बैठक में कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी, बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अलवरू, प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव मौजूद रहेंगे। यही बैठक यह तय करेगी कि कांग्रेस की मांग कितनी मानी जाएगी।
क्या कांग्रेस को 70 सीटें दी जाएंगी या उसे 40 सीटों पर ही समझौता करना पड़ेगा? यही इस बैठक का सबसे बड़ा सवाल है। इस पर तेजस्वी यादव का रुख निर्णायक साबित होगा।
महागठबंधन का भविष्य दांव पर
बिहार की राजनीति में महागठबंधन का समीकरण बेहद अहम है। अगर सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनती तो गठबंधन के भीतर असंतोष बढ़ सकता है। यह असंतोष चुनावी मैदान में सीधे-सीधे एनडीए को फायदा पहुँचा सकता है।
इसके विपरीत, अगर आज की बैठक में कोई ठोस फॉर्मूला निकलता है और सभी दल एकजुट होकर मैदान में उतरते हैं, तो महागठबंधन मजबूत चुनौती पेश कर सकता है। यही वजह है कि आज की बैठक को “महागठबंधन के भविष्य की बैठक” भी कहा जा रहा है।
निष्कर्ष
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन की सबसे बड़ी परीक्षा सीट बंटवारे को लेकर है। कांग्रेस की 70 सीटों की मांग और आरजेडी की 40 सीटों की पेशकश के बीच रास्ता निकालना आसान नहीं होगा। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की बातचीत पर ही इस समीकरण की दिशा निर्भर करेगी।
अगर समझौता हो जाता है तो विपक्षी एकता मजबूत होगी और चुनाव में एनडीए के सामने कड़ी चुनौती खड़ी होगी। लेकिन यदि समझौता नहीं बनता, तो महागठबंधन का भविष्य सवालों के घेरे में आ जाएगा।

