Maha Kumbh 2025: प्रयागराज। महाकुंभ 2025 के आयोजन से पहले मुस्लिम व्यापारियों को मेले में भागीदारी से रोकने का प्रस्ताव धार्मिक और सामाजिक विवादों का केंद्र बन गया है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और संत समाज ने उत्तर प्रदेश सरकार से यह मांग की है। इस मुद्दे ने भारत की धर्मनिरपेक्षता और समावेशी परंपराओं पर बहस छेड़ दी है।
Maha Kumbh 2025
मुस्लिम व्यापारियों पर प्रतिबंध की मांग क्यों?
अखाड़ा परिषद का कहना है कि कुंभ एक पवित्र हिंदू धार्मिक आयोजन है, और यहां सिर्फ हिंदू धर्म से जुड़े लोगों को व्यापारिक गतिविधियों की अनुमति दी जानी चाहिए। परिषद के एक सदस्य ने कहा, “धार्मिक आयोजन में पवित्रता बनाए रखना हमारी प्राथमिकता है। बाहरी तत्व इसे प्रभावित कर सकते हैं।”
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बागेश्वर धाम का समर्थन
बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। उन्होंने इसे हिंदू धर्म की सुरक्षा और पवित्रता से जुड़ा मुद्दा बताया।
विरोध के स्वर: भारतीयता और धर्मनिरपेक्षता का सवाल
इस प्रस्ताव के खिलाफ आवाजें भी उठी हैं। आल इंडिया मुस्लिम जमात के प्रमुख मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रज़वी ने इसे भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया। उनका कहना है कि “कुंभ हमेशा से विविधता और भाईचारे का प्रतीक रहा है। यह प्रस्ताव सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाएगा।”
सामाजिक और सांस्कृतिक समावेशिता का सवाल
कई विशेषज्ञों का कहना है कि कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है। यह सांस्कृतिक और सामाजिक मेलजोल का मंच है, जहां विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग भाग लेते हैं।
इतिहास के पन्नों से: कुंभ की समावेशी परंपरा
कुंभ मेले का इतिहास बताता है कि यह आयोजन केवल हिंदू समुदाय तक सीमित नहीं रहा है। सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने उल्लेख किया था कि सम्राट हर्षवर्धन ने कुंभ में सभी धर्मों के लोगों के साथ दान और संवाद किया।
समर्थन में तर्क: मक्का-मदीना का उदाहरण
कुछ समूहों का कहना है कि जब गैर-मुस्लिमों को मक्का और मदीना में प्रवेश की अनुमति नहीं है, तो मुस्लिम व्यापारियों को कुंभ में भाग लेने की अनुमति क्यों दी जाए? हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह तुलना अनुचित है, क्योंकि भारत की परंपरा समावेशी और बहुलतावादी है।
राजनीतिक आयाम: सरकार का रुख क्या होगा?
उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी इस विवादास्पद प्रस्ताव पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केवल यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया है कि कुंभ 2025 का आयोजन भव्य और शांतिपूर्ण हो।
संभावित प्रभाव: सामाजिक सौहार्द्र पर खतरा
अगर यह प्रस्ताव स्वीकार किया गया, तो यह भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए असुरक्षा की भावना को बढ़ा सकता है। सामाजिक विशेषज्ञों का मानना है कि इससे धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिलेगा।