क्या पप्पू यादव कांग्रेस को ‘पप्पू’ बना रहे? बिहार की सियासत में उठते सवाल

Shubhra Sharma
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बिहार की राजनीति हमेशा ही अप्रत्याशित मोड़ों और चौंकाने वाले घटनाक्रमों के लिए जानी जाती रही है। लेकिन इस बार राजनीति के गलियारों में चर्चा का केंद्र बने हैं पूर्णिया के निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव। हाल ही में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा कर सबको हैरान कर दिया। ये कदम खासतौर पर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पप्पू यादव लंबे समय से कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी के प्रति निष्ठा रखते आए हैं। लेकिन अब उनकी राजनीतिक चाल ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वे कांग्रेस को ‘पप्पू’ बनाने की कोशिश कर रहे हैं?

पप्पू यादव ने अपनी राजनीतिक यात्रा में हमेशा अनोखे कदम उठाए हैं। अपनी पार्टी, जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) को कांग्रेस में विलय करने के बावजूद, उन्होंने खुद को एक निर्दलीय सांसद के रूप में स्थापित किया। इस स्थिति ने उन्हें राजनीतिक रूप से एक अनोखी स्वतंत्रता दी है, जिससे वे दोनों प्रमुख राजनीतिक धड़ों—एनडीए और महागठबंधन—से लाभ लेने की स्थिति में हैं।

हाल ही में पूर्णिया हवाई अड्डे के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच साझा करना इसका सबसे बड़ा उदाहरण था। इस कार्यक्रम के दौरान पप्पू यादव ने मंच पर मोदी के साथ करीब 20 सेकेंड की बातचीत की, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी ने खिलखिलाकर हंसना भी देखा। यह छोटा सा क्षण राजनीतिक हलकों में लंबे समय तक चर्चा का विषय बना। मंच पर सौहार्दपूर्ण व्यवहार और बातचीत ने भाजपा के समर्थकों को हैरान कर दिया, जबकि कई कांग्रेस समर्थक सोच में पड़ गए कि आखिर पप्पू यादव इस तरह का कदम क्यों उठा रहे हैं।

इसी दौरान पप्पू यादव ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर किसानों के मुद्दे पर राहुल गांधी की तारीफ करते हुए मोदी सरकार की आलोचना भी की। इस कदम ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे अपनी निष्ठा राहुल गांधी के प्रति बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन साथ ही एनडीए के साथ भी सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहते हैं। यह रणनीति उन्हें दोनों गठबंधनों के बीच महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना रही है।

पप्पू यादव का दोहरा राजनीतिक दांव

पप्पू यादव की राजनीतिक रणनीति को एक तरह से ‘दो नावों की सवारी’ के रूप में देखा जा सकता है। एक तरफ वे कांग्रेस और राहुल गांधी के प्रति अपनी अटूट निष्ठा का प्रदर्शन करते हैं, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच साझा कर एनडीए के साथ भी संपर्क बनाए रखते हैं। उनकी यह चाल बिहार विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस से अधिकतम लाभ हासिल करने का एक तरीका हो सकती है।

उनकी पत्नी रंजीत रंजन पहले से ही कांग्रेस से राज्यसभा सांसद हैं, जिससे पप्पू यादव को अपनी स्वतंत्र स्थिति का फायदा उठाने में मदद मिल रही है। इस दांव ने उन्हें बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण और केंद्रित भूमिका दिला दी है। सीमांचल क्षेत्र की 31 विधानसभा सीटों पर उनकी पकड़ को देखते हुए, वे कांग्रेस और राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन दोनों के लिए एक निर्णायक खिलाड़ी बन गए हैं।

राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रियाएं

पप्पू यादव की इस रणनीति ने राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। कई भाजपा नेताओं और समर्थकों ने कांग्रेस पर यह आरोप लगाया कि वे पप्पू यादव को अपने मतदाता और चुनावी रणनीति के लिए प्रयोग कर रही हैं। वहीं, भाजपा के राष्ट्रव्यापी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने एक्स पर लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी के बीच पप्पू यादव की स्थिति में स्पष्ट अंतर है। उन्होंने कहा कि मोदी के साथ पप्पू यादव को मंच और सम्मानजनक स्थान मिला, जबकि कांग्रेस के मंच पर उन्हें कई बार अपमानित किया गया।

यह स्पष्ट करता है कि पप्पू यादव की रणनीति सिर्फ राजनीतिक निष्ठा दिखाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें दोनों गठबंधनों से लाभ उठाने की सूक्ष्म चाल भी शामिल है।

क्या पप्पू यादव कांग्रेस को ‘पप्पू’ बना रहे हैं?

निर्दलीय सांसद रहते हुए भी पप्पू यादव कांग्रेस और राहुल गांधी के प्रति अपनी निष्ठा दिखाकर दोनों पक्षों से रियायतें हासिल कर रहे हैं। उनकी हाल की मुलाकातें और सार्वजनिक बयान यह संकेत देते हैं कि वे बिहार में अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर।

उनकी रणनीति यह है कि वे अपनी स्वतंत्र छवि का उपयोग करते हुए दोनों गठबंधनों से टिकट और अन्य राजनीतिक लाभ प्राप्त कर सकें। इस प्रकार कांग्रेस और महागठबंधन के लिए पप्पू यादव एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गए हैं। वहीं, उनकी चाल ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या कांग्रेस पप्पू यादव को एक वफादार सहयोगी मान रही है, या वे अपनी चालाकी से कांग्रेस को ‘पप्पू’ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

निष्कर्ष

बिहार की राजनीति में पप्पू यादव की यह चाल दर्शाती है कि सियासत केवल निष्ठा और गठबंधनों तक सीमित नहीं रहती। यह रणनीति, सूझबूझ और अवसरों का खेल भी है। पप्पू यादव ने अपने निर्दलीय टैग और राजनीतिक कद का लाभ उठाकर दोनों खेमों से संभावित लाभ हासिल किया है। यह देखा जाना बाकी है कि आगामी विधानसभा चुनावों में उनकी यह रणनीति कांग्रेस और महागठबंधन के लिए कितना फायदेमंद या चुनौतीपूर्ण साबित होगी।

फिलहाल, पप्पू यादव की चाल यह साफ कर देती है कि बिहार की राजनीति में अप्रत्याशित और रणनीतिक कदम किसी भी समय खेल का रुख बदल सकते हैं, और निर्दलीय सांसद भी मुख्यधारा की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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