dhruv kundu sacrificed for the country: कटिहार का शहीद चौक ध्रुव कुंडू के बलिदान की याद में , 13 साल की उम्र में क्रांतिकारी..

Shashikant kumar
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dhruv kundu sacrificed

dhruv kundu sacrificed for the country: कटिहार का शहीद चौक ध्रुव कुंडू के बलिदान की याद में – इतिहास के पन्नो ने ध्रुव कुंडू को भुला दिया अगर आप इतिहास किताबे पढ़ेगे तो कही भी ध्रुव कुंडू का जिक्र नहीं मिलेगा। परंतु उनका गृह जिला कटिहार ने भी ध्रुव कुंडू को याद नहीं रखा। अगर सच कहे तो इतिहासकारों ने अन्याय किया ही परंतु उनके गृह जिले कटिहार ने भी न्याय नहीं कर सका। स्वतंत्रता के 75 साल हो चुके है। अगर आज हम आजादी के खुले हवा में सांस ले रहे है। तो इसके पिछे की वजह ध्रुव कुंडू जैसे वीर है।

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कैप्शन:- कटिहार के शहीद चौक और शहीद स्तंभ। कटिहार का दिल याद दिलाता है ध्रुव कुंडू की शहादत जिले के लोगों को बहादुर बांकुरों के बलिदान पर गर्व है। dhruv kundu sacrificed for the country कटिहार : भारत माता के वीर सपूत देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से पीछे नहीं हटे। ऐसे में कटिहार कैसे पीछे रह सकता था? यहां भी वीरों के खून में जोश की ज्वाला भड़क उठी। यहां के एक बीर लड़के ध्रुव कुंडू ने कोतवाली के पास अंग्रेजों का सामना किया और अपने सीने पर गोली मारकर देश के लिए खुद को बलिदान कर दिया।

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कटिहार का शहीद चौक ध्रुव कुंडू के बलिदान की याद में

वीर ध्रुव के अलावा अन्य वीर शहीदों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी और देश को फिरंगी से मुक्त कराया और हमें सिर ऊंचा करके जीने के योग्य बनाया। कटिहार जिले में भी कई ऐसे वीर शहीद हुए, जिन पर जिले की जनता हमेशा गौरवान्वित और गौरवान्वित महसूस करती है। इसका गवाह है आज का शहीद चौक। यही कारण है कि आज भी लोग कटिहार के बीचोबीच स्थित इस चौक के पास से गुजरते हुए श्रद्धा से सिर झुकाते हैं।

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ध्रुव कुंडू के जन्म और शिक्षा के बारे जानकारी

गांधीजी के 1934 के कटिहार दौरे के समय में इस शहर में एक बालक था जिसका जन्म कटिहार के प्रसिद्ध कांग्रेस नेता और डाक्टर घर पर हुआ था। इस बालक का जन्म कटिहार के धरती पर 1929 हुआ था। ध्रुव कुंडू के शिक्षा के बात करे तो वो अपनी पहली से 7 वी तक की पढ़ाई राम किशन मिशन कोलकाता से की और उसके बाद आगे की पढ़ाई गृह जिला कटिहार के महेश्वरी एकेडमी से किया।

कटिहार का शहीद चौक ध्रुव कुंडू के बलिदान की याद में

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इनमें से कई शहीदों के नाम लोगों की जुबान पर हैं तो कई ने बिना नाम बताए देश के लिए खुद को कुर्बान कर दिया. जिले का शहीद चौक आज भी इन शहीदों की गाथा सुनाता है। नगर निगम कार्यालय के पास शहीद स्तंभ पर अंकित इन शहीदों के नाम देशवासियों के सिर चढ़कर बोल रहे हैं। वैसे भी स्वतंत्रता संग्राम में इस जगह का इतिहास सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। कहा जाता है कि अगस्त 1942 में जब पूरे देश में अंग्रेजों का भारत छोड़ो का नारा लगा, तभी कटिहार में इसकी आग भड़क उठी। 13 साल के ध्रुव कुंडू की उम्र खेलने-कूदने की थी, लेकिन इस वीर ने भारत माता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। 13 अगस्त को कटिहार में भड़के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों ने यहां उप पंजीयक के कार्यालय को ध्वस्त कर दिया था. यहां के मुंसिफ दरबार पर तिरंगा फहराया गया और जोश से भरा क्रांतिकारी शहर कोतवाल कार्यालय की ओर बढ़ गया। उनकी मंशा भांपते हुए अंग्रेजों ने उन पर गोलियां चला दीं। अंग्रेजों की गोली बालक ध्रुव को भी लगी और अगले दिन उसकी मृत्यु हो गई।जहां इस नायक को गोली मारी गई थी, आज वहाँ पर शहीद चौक स्थित है। मातृभूमि के लिए जिले के ध्रुव कुंडू, रामाशीष सिंह, रामाधर सिंह, बिहारी साह, भूसी साह, कलानंद मंडल, दामोदर साह, नाटय टीयर, लालजी मंडल, झुवरू मंडल, झावरू मंडल समेत कई अन्य वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी. जिले के समेली, कुर्सेला, पोठिया, फाल्का, डुमर, मल्हारिया, खेरिया, महेशपुर, मनिहारी, बरारी, डूमर आदि क्षेत्र आज भी इन क्रांतिकारियों की शहादत की याद दिलाते हैं।

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जिले के तारणी प्रसाद, नवल किशोर, दुर्गा गुप्ता, वनमाली झा, अजबलाल भगत, नथुनी सिन्हा, कमल बोस आदि ने देश के लिए अपने परिवार की भी परवाह नहीं की. कटिहार के लोगों की देशभक्ति की भावना ने महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भी इस धरती पर आने के लिए मजबूर कर दिया। उनकी प्रेरणा ने जिले के लोगों को देश के स्वतंत्र होने तक स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रखा।

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ध्रुव कुण्डू के नेतृत्व में 13 जवानों ने 13 अगस्त 1942 को दी थी शहादत

स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेता महात्मा गांधी के आह्वान पर 9 अगस्त 1942 को करो या मरो और अंग्रेजों को भारत छोड़ो के नारे के बाद बिहार से ही आंदोलन की शुरुआत हुई थी। जिसमें कटिहार की भागीदारी बेजोड़ रही। 42 के आंदोलन को साकार करने और भारत माता को अधीनता की बेड़ियों से मुक्त करने के उद्देश्य से जिले के युवाओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। अखिल पूर्णिया जिला गजेटियर से प्राप्त जानकारी के अनुसार 10 अगस्त को तत्कालीन पूर्णिया जिले के कांग्रेस आश्रम टिकापट्टी में सभा कर रहे कांग्रेसियों को न केवल ब्रिटिश शासकों ने गिरफ्तार किया था, बल्कि कांग्रेस आश्रम को भी सील कर दिया गया था. 12 अगस्त को जिले के झौआ और अन्य स्थानों पर रेलवे लाइनों और टेलीग्राफ में तोड़फोड़ की गई थी। 13 अगस्त को शहर के 13 वर्षीय बालक ध्रुव कुंडू के नेतृत्व में आंदोलनकारियों की भीड़ ने मुंसफ दरबार के ऊपर से यूनियन जैक को हटाकर तिरंगा फहराया. ब्रिटिश सैनिकों ने भीड़ पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। जिससे भीड़ में मौजूद बालक ध्रुव को गोली लग गई। बाद में उसे इलाज के लिए पूर्णिया जे लाया गया जहां वह शहीद हो गया। ध्रुव की शहादत के बाद उसके पिता किशोरी लाल कुंडू और अन्य नेताओं ने ध्रुव दल का गठन किया। धारवदल के नेतृत्व में तत्कालीन कटिहार अनुमंडल सहित पूर्णिया जिले के अन्य हिस्सों में भी आंदोलन तेज हो गया था.

शहीद चौक के नाम से जाना जाता है

शहर में जिस स्थान पर आंदोलनकारी ध्रुव को गोली मारी गई थी, उसे शहीद चौक के नाम से जाना जाता है। बाद में उक्त स्थल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मारक बनाया गया। इतना ही नहीं नगर निगम परिसर में शहीदों की याद में शहीद स्मारक बनाया गया। दैनिक हिन्दुस्तान में समाचार प्रकाशित होने के बाद पिछले पांच वर्षों से प्रशासन राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर शहीद स्तंभ पर माल्यार्पण कर रहा है. देश को आजाद कराने के लिए 13 अगस्त को ध्रुव कुंडू, रामाशीष सिंह, रामाधर सिंह, बिहारी साह, भूसी साह, कलानंद मंडल, दामोदर साह, फू लो मोदी, रामचू यादव, नाटय परिहार, लालजी मंडल, झाबरू के अलावा झाउआ और देवीपुर मंडल, और झाबरू मंडल झौआ ने शहादत देकर देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई. दूसरी ओर, स्थानीय नागरिक हर साल 13 अगस्त को कुर्सेला स्थित रेलवे लाइन के पास देवीपुर में शहीद हुए शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। देवीपुर में शहादत देने वाले शहीद जो इतिहास के पन्नों में गायब थे, उन्हें पूर्व सांसद नरेश यादव के प्रयासों से खोजा गया और शहीद स्तंभ में जोड़ा गया।

कौन थे वीर ध्रुव कुंडू

भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान गंवाने वाले सैकड़ों वीर सपूत हैं। लेकिन सबसे कम उम्र के शहीद ध्रुव कुंडू ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। ध्रुव कुंडू पेशे से डॉक्टर किशोरी लाल कुंडू के छोटे बेटे थे। डॉ. किशोरी लाल स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी थीं। कहा जाता है कि ध्रुव कुंडू बचपन से ही बहुत बहादुर थे। एक दिन स्कूल जाते समय कुछ ब्रिटिश सैनिकों ने किसानों और मजदूरों पर लाठियों से हमला करना शुरू कर दिया। रास्ते में पड़े एक पत्थर से ध्रुव कुंडू ने ब्रिटिश सैनिक पर हमला कर उसका लहूलुहान कर दिया। जिससे उन्हें वापस लौटना पड़ा।

13 साल की उम्र में क्रांतिकारी

पेशे से प्रोफेसर संजय कुमार सिंह ने बताया कि जिस उम्र में बच्चे कूद-कूदकर खुश होते हैं। वहीं 13 वर्षीय ध्रुव कुंडू महात्मा गांधी के ‘ब्रिटिश भारत छोड़ो’ आंदोलन में कूद पड़े। 13 अगस्त तक 1942 का यह आंदोलन स्वतंत्रता की लहर के रूप में फैल चुका था। स्वतंत्रता सेनानियों के एक समूह ने तब कटिहार के सब रजिस्ट्रार के कार्यालय को ध्वस्त कर दिया और ब्रिटिश सरकारी कार्यालयों से ब्रिटिश झंडे उखाड़ दिए। यहां के मुंसिफ कोर्ट समेत सरकारी दफ्तरों पर भारतीय तिरंगा लहराने लगा था.

हंसते हुए खुद की कुर्बानी दी

स्वतंत्रता सेनानियों का यह दल कोतवाली थाने में झंडा फहराने निकला था। इस बात की भनक अंग्रेजों को पहले से थी। हाथों में तिरंगा लेकर ब्रिटिश सैनिकों ने हजारों समूहों को विपरीत पैर पर लौटने के लिए कहा। ब्रिटिश सैनिकों की लंबी तोपों को देखकर सभी पीछे हट गए। लेकिन 13 साल का कुंडू हाथ में तिरंगा लेकर थाने की ओर बढ़ता रहा। उन्होंने कहा कि वीरों के पैर देश पर मरने के लिए आगे बढ़ते हैं। वापस नहीं करना है। इस पर अंग्रेजों ने उन पर गोलियां चला दीं। इसमें एक गोली उनके सीने में लगी। उसे इलाज के लिए पूर्णिया सदर अस्पताल ले जाया गया। लेकिन 15 अगस्त 1942 की सुबह तक उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। ईटीवी इंडिया की टीम ने लिया जायजा वीर सपूत की समाधि पर उनके बलिदान के 77 वर्ष बाद भी राजनीति के अलावा उनके स्मारकों और उद्यानों में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है। मधुबनी चौक पर ध्रुव कुंडू की शहादत की याद में बने बगीचे में जब ईटीवी इंडिया की टीम पहुंची तो ध्रुव कुंडू की मूर्ति की जगह इस बगीचे में रॉड, गिट्टी और रेत पड़ी मिली. जिनका इस्तेमाल किसी और के घर के निर्माण में किया जाना था।

खंडहर पर आंसू बहा रहे वीर कुंडू की याद में बने स्थान

शहीद ध्रुव कुंडू की वीरता को याद करते हुए एक स्थानीय निवासी ने बताया कि ध्रुव कुंडू की वीरतापूर्ण कहानियों से प्रेरणा लेकर आने वाली पीढ़ियों के लिए स्मारक और उद्यान बनाए जाए। जिसमें जिले के मधुबनी चौक के ध्रुव कुंडू वाटिका भी शामिल हैं. जहां उनके पार्थिव शरीर को अंतिम बार ध्रुव कुंडू के दर्शन के लिए रखा गया था। शहीद ध्रुव के स्मारकों को बेहतर बनाने के लिए लाखों रुपये खर्च किए गए। लेकिन हालत जस की तस है। बाग के सौंदर्यीकरण के लिए विधायक निधि से लाखों रुपये खर्च किए गए। लेकिन हर बार किसी न किसी रुकावट के चलते यह काम अधर में लटक गया. 

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राजकीय सम्मान की मांग

वहीं स्थानीय निवासी ने सरकार से मांग की कि कुंडू ने हंसते-हंसते अपनी जान दे दी. उनके बलिदान दिवस को राजकीय पर्व के रूप में मनाया जाना चाहिए। आज इस लेख माध्यम से हम यही कहना चाहते है कि इस देश के स्वतंत्रता आंदोलन में केवल नेहरू गांधी ही
नहीं बल्कि कि कई लोगो नो बलिदान दिया , जिसका जिक्र इतिहास किताबो में नहीं है। हम उन सभी वीरो के कहानी लाने का प्रयास करेंगे । जिन्हे इतिहास पन्नो स्थान नहीं मिला है। हमारा उद्देश्य एकमात्र है कि इन वीरो को उनका अधिकार सम्मान मिले। आपसे यही विनती करेंगे कि इस लेख ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और लोगो को जानकारी दे कि देश के सबसे कम उम्र के शहीद ध्रुव कुंडू है।और अंत हम सब आजादी उन सभी वीरो को श्रद्धांजलि दे।

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शशिकांत कुमार युवा लेखक राजनीति, 2024 की रणभूमि पुस्तक के लेखक। पिछले कई चुनावों से लगातार ही सबसे विश्वसनीय विश्लेषक।।।