बिहार की बेरोजगारी बेमिसाल: पेपर लीक का कारोबार, सरकार की नाकामी और युवाओं को हर बार ठेंगा

Shubhra Sharma
8 Min Read

देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों में से एक बिहार इन वर्षों में युवाओं की बेरोजगारी के कारण सुर्खियों में रहा है। शहरी-ग्रामीण क्षेत्रों में अंतर, परीक्षा पेपर लीक की घटनाएँ, कौशल-अभाव और विकास की धीमी रफ्तार — सब मिलकर यह स्थिति पैदा कर रही हैं कि हजारों युवा निराशा की चपेट में हैं।

बिहार की बेरोजगारी: आंकड़ों की पड़ताल

कुल स्थिति और दरें

बिहार की वार्षिक बेरोजगारी दर 2022-23 में 3.9 % दर्ज की गई थी, जो राष्ट्रीय औसत (3.2 %) से थोड़ी अधिक है।

राज्य आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में बेरोजगारी दर लगभग 3.4 % है।

युवा वर्ग (15–29 वर्ष, शहरी क्षेत्र) में बेरोजगारी दर लगभग 10.8 % पाई गई है।

कार्यशक्ति भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate, LFPR) राज्य में 43.4 % है, जो राष्ट्रीय औसत (56 %) से बहुत कम है।

पुरुष LFPR लगभग 70.6 %, जबकि महिला LFPR मात्र 15.6 % है।

ज़िला स्तर का उदाहरण: पटना

एक सर्वेक्षण अनुसार, पटना जिले में अक्टूबर 2021 में बेरोजगारी दर 33.3 % थी।

ग्रामीण क्षेत्र: 31.3 %

शहरी क्षेत्र: 39.2 %

महिलाओं में बेरोजगारी दर: 45 %

पुरुषों में बेरोजगारी दर: 27.65 %

 

> टिप्पणी: यह ज़िला-स्तर सर्वेक्षण अधिक व्यापक राज्य-स्तर डेटा नहीं दर्शाता, लेकिन यह स्थिति की गंभीरता को उजागर करता है।

 

हाल की दरों में वृद्धि

PLFS एवं अन्य स्रोतों के अनुसार, 2021-22 में बिहार की बेरोजगारी दर लगभग 5.9 % तक पहुँच गई थी, जबकि पिछले वर्ष 4.6 % थी।

संसद के एक सत्र में यह भी कहा गया कि 2017-18 में बिहार की बेरोजगारी दर 7 % थी, और अब वह लगभग 3 % तक आ गई है।

पेपर लीक: घटना, संख्या और प्रणालीगत दोष

प्रसिद्ध मामलों की झड़ी

NEET 2024: प्रश्नपत्र परीक्षा से कुछ घंटे पहले लीक हुआ माना गया — 13 आरोपी गिरफ्तार हुए।

BPSC 70वीं CCE (प्रारंभिक परीक्षा): लीक आरोपों ने परीक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा किया।

कई अन्य भर्ती परीक्षाओं (टीचर भर्ती, पुलिस भर्ती आदि) में भी लीक-आरोप समय-समय पर सामने आए।

कितने हो चुके हैं — संख्या का अभाव

सार्वजनिक स्रोतों में 2014 से लेकर अब तक की संपूर्ण संख्या उपलब्ध नहीं है।

मीडिया रिपोर्ट्स और छात्र संगठनों के दावों के अनुसार, कम से कम दस बड़े पेपर लीक मामले राज्य में प्रकाश में आए हैं।

लेकिन आधिकारिक जांच रिपोर्ट में अधिक मामलों की पुष्टि नहीं हो पाई है, या वे गुमनाम रखे गए हैं।

सरकार-संबद्ध वक्ताओं का तर्क है कि “कोई ठोस सबूत नहीं मिला” ताकि लीक को साबित किया जाए।

पेपर लीक क्यों होते हैं — तंत्रगत कमजोरियाँ

1. सुरक्षा व्यवस्था की कमज़ोरी
परीक्षा कक्षों, भंडारण कक्षों, बोर्डों पर निगरानी उपकरण कम या अनुपस्थित हैं।
प्रश्न–उत्तर पैकेटों की डिलीवरी में असुरक्षित मार्ग, त्रुटि, या भ्रष्ट प्रवृत्तियाँ होती हैं।

2. प्रशासनिक लापरवाही और तंत्रगत दोष
परीक्षा आयोग और संबंधित विभागों के बीच जागरूकता, जवाबदेही और निगरानी तंत्र कमजोर रहते हैं।
अक्सर अस्वच्छ मानव हस्तक्षेप, अनधिकृत हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार की सम्भावना बनी रहती है।

3. वित्तीय प्रलोभन और भ्रष्ट नेटवर्क्स
कुछ एजेंट, दलाल और ‘होपर्स’ परीक्षा के प्रश्नपत्रों को अवैध रूप से बेचते हैं।
पैसे, रसूख और सामाजिक संबंधों का प्रयोग कर परीक्षा प्रणाली में पैठ बनाना आसान हो जाता है।

4. निरंतर लचीला नियम और उन्मुक्त प्रक्रिया
प्रश्न पत्रों का संकोचन, प्रिंटिंग, पैकेजिंग और वितरण सबकुछ एक आम मानक प्रक्रिया में नहीं बाँधा जाता।
कई बार अंतिम समय की प्रक्रियाएँ ठीक से नहीं देखी जातीं।

5. न्यायालयिक और राजनीतिक दबाव
जब लीक की घटना उजागर होती है, तो राजनीतिक दबाव या जांच प्रक्रिया की देरी से जिम्मेदार लोग बच जाते हैं।
निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की कमी—लापरवाही की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है।

सरकार की नाकामियाँ — जहाँ योजनाएँ धराशायी हुईं

क्रियान्वयन की कमी: योजनाएँ तो बनती हैं, लेकिन समय पर लागू न होना, अनुदान न देना या बजट का उपयोग नहीं करना आम बात है।

निगरानी एवं जवाबदेही का अभाव: जब भ्रष्टाचार या लीक की घटनाएँ सामने आती हैं, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई अक्सर नहीं होती।

स्वयं-घोषणाएँ, लेकिन स्थाई सुधार नहीं: चुनावी समय घोषणाएँ तेज होती हैं, लेकिन दीर्घकालिक नीति सुधार कम होते हैं।

पारदर्शिता की कमी: अभियोगों, जांच रिपोर्टों या दोषियों को सार्वजनिक रूप से उजागर न करना, जनता को असमर्थ महसूस कराता है।

स्किल और स्वरोजगार पर ज़ोर नहीं: योजनाओं में तकनीकी एवं व्यावसायिक कौशल विकास की अनदेखी होती है।

प्रभाव शिक्षा-नीति की विफलता: पाठ्यक्रम उद्योग की माँग से मेल नहीं खाते, विश्वविद्यालय–कौशल केंद्र आपस में जुड़े नहीं हैं।

भौतिक एवं बुनियादी अवसंरचना की कमी: बिजली, सड़क, सिचाई, इंटरनेट, औद्योगिक पार्क की कमी विकास को रोके रखती है।

आर्थिक निवेश न्यूनता: निजी निवेश की कमी और राज्य में औद्योगीकरण धीमा होना रोजगार सृजन को बाधित करता है।

राजनीतिक प्राथमिकताओं का बदलाव: शासन बदलते रहने से continuity नहीं बनी, सुधार योजनाएँ स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ पाईं।

सामाजिक और आर्थिक नतीजे

युवाओं में निराशा और मानसिक तनाव
योग्य उम्मीदवार अक्सर अपना आत्मविश्वास खो देते हैं, तनाव, अवसाद जैसी चुनौतियों का सामना करते हैं।

राजनयिक विरोध, प्रदर्शन और आंदोलन
बेरोजगारी और लीक के खिलाफ छात्र और युवा आंदोलन आम हो गए हैं।

मास पलायन (Migration)
बेहतर रोजगार की तलाश में युवाओं का दूसरे राज्यों या शहरों में जाना बढ़ गया है।

असमानता और सामाजिक तनाव
बेरोजगारी और भ्रष्टाचार मिलकर सामाजिक विभाजन, अपराध एवं अस्थिरता को बढ़ाते हैं।

सरकारी संसाधनों का अपव्यय
योजनाओं पर खर्च किया गया धन और संसाधन अपेक्षित परिणाम न दिखाने पर व्यर्थ जाता है।

समाधान और सिफारिशें

1. परीक्षा व्यवस्था को पूरी तरह पुनर्गठन करना

कड़े सुरक्षा उपाय (CCTV, बॉयलर रूम, दोहरी मोहर, कंप्यूटर आधारित परीक्षा) लागू करना

तीसरी पक्ष निगरानी एजेंसियाँ नियुक्त करना

प्रश्न पत्र वितरण अनुशासनित और ट्रैक किए जाने वाले चैनलों में करना

दोषियों के खिलाफ तीव्र न्यायालयिक कार्रवाई

 

2. स्किल विकास और उद्योग–शिक्षा तालमेल

व्यावसायिक / तकनीकी पाठ्यक्रम, उपयोगी प्रमाणन देना

इंटर्नशिप, अप्रेंटिसशिप योजनाओं का विस्तार

स्थानीय उद्योगों एवं स्टार्टअप को छात्रों से जोड़ना

 

3. स्वयं-रोजगार एवं नवाचार को बढ़ावा

लोन, अनुदान या सब्सिडी योजनाएँ छोटे व्यवसायों के लिए

स्टार्टअप इनक्यूबेटर और ग्राम-उद्योग केंद्रों को प्रोत्साहन

 

4. औद्योगीकरण एवं निवेश रणनीति

औद्योगिक क्षेत्र, विशेष आर्थिक ज़ोन (SEZs) और बुनियादी ढाँचे को बेहतर बनाना

कर रियायत, सरल लाइसेंस नीति तथा ज़मीन उपलब्ध कराना

 

5. निगरानी एवं जवाबदेही तंत्र मजबूत करना

योजनाओं पर समय-समय पर ऑडिट और प्रदर्शन मूल्यांकन

जाँच रिपोर्ट सार्वजनिक करना, दोषियों को जमानत न देना

डिजिटल मॉनिटरिंग और शिकायत निवारण प्रणाली

 

6. नीति स्थिरता और राजनीतिक संकल्प

शासन परिवर्तन के बावजूद सुधार नीतियाँ जारी रखना

लंबी अवधि की रणनीति बनाना (5–10 वर्ष) और उसके आधार पर काम करना

Share This Article