चुनावी मौसम में बढ़ता तनाव
बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही माहौल गरमाता जा रहा है। राजधानी पटना में हाल ही में हुए प्रदर्शनों पर पुलिस की सख्ती ने राजनीतिक हलचल और बढ़ा दी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे सीधे-सीधे एनडीए सरकार की “तानाशाही प्रवृत्ति” करार देते हुए कहा है कि राज्य की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है।
पटना में क्यों भड़के हालात?
पिछले कुछ दिनों से दो तरह के आंदोलन पटना की सड़कों पर गूंज रहे हैं।
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लैंड सर्वेयर कर्मचारी – करीब दो हफ्तों से हड़ताल पर हैं। वजह यह कि उनके 16 साथियों को निलंबित कर दिया गया।
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शिक्षक भर्ती परीक्षा अभ्यर्थी – ये उम्मीदवार “सप्लीमेंट्री रिज़ल्ट” जारी करने की मांग को लेकर धरने पर हैं।
दोनों ही समूहों ने सरकार से न्याय की मांग की, लेकिन जवाब में उन्हें लाठियां झेलनी पड़ीं। पुलिस बल ने प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग किया, जिससे हालात और बिगड़ गए।
राहुल गांधी का सीधा हमला
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को उठाते हुए एक वीडियो साझा किया। उन्होंने लिखा कि जब रोज़गार मांगा जाता है तो बदले में लाठी दी जाती है। जब अधिकार मांगे जाते हैं तो अत्याचार मिलता है। उनका संदेश साफ था— इस बार बिहार का युवा चुप नहीं बैठेगा और सत्ता के अहंकार को जवाब देगा।
गांधी ने आगे कहा कि राज्य का युवा इस “गुंडा सरकार” को उसकी असली जगह दिखाएगा। उनका दावा है कि सरकार ने युवाओं की उम्मीदों और भविष्य दोनों को चोट पहुंचाई है।
युवा नाराज़ क्यों हैं?
बिहार देश के सबसे युवा राज्यों में से एक है। यहां नौकरी और शिक्षा हमेशा चुनावी बहस के केंद्र में रहते हैं।
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बेरोज़गारी दर लगातार चिंता का विषय रही है।
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सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में देरी और पारदर्शिता की कमी युवाओं को निराश करती है।
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शिक्षा व्यवस्था और परीक्षा परिणामों में गड़बड़ी युवाओं की बेचैनी को और बढ़ाती है।
जब इन मुद्दों को लेकर सड़क पर आवाज़ उठाई जाती है और उसका जवाब लाठियों से दिया जाता है, तो आक्रोश और गहराता है।
चुनाव से पहले विपक्ष को मिला मुद्दा
बिहार में विधानसभा चुनाव कुछ ही महीनों में होने वाले हैं। ऐसे में युवाओं का यह असंतोष विपक्षी दलों के लिए बड़ा हथियार बन सकता है। कांग्रेस और महागठबंधन की अन्य पार्टियां बेरोज़गारी, शिक्षा और सरकारी उपेक्षा को लेकर जनता के बीच माहौल बनाने में जुट सकती हैं।
राहुल गांधी का बयान इस रणनीति की शुरुआत माना जा रहा है। उन्होंने युवाओं को भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि उनकी आवाज़ संसद से लेकर सड़कों तक उठाई जाएगी।
सरकार पर दबाव
राज्य सरकार के लिए यह स्थिति आसान नहीं है। एक तरफ कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी है, तो दूसरी ओर जनता को यह भरोसा दिलाना भी जरूरी है कि उनकी समस्याओं को गंभीरता से सुना जा रहा है। अगर सरकार समय पर समाधान नहीं देती, तो यह मामला चुनाव में उसके खिलाफ भारी पड़ सकता है।
उलटी गिनती का क्या मतलब?
राहुल गांधी ने “काउंटडाउन” शब्द का इस्तेमाल कर साफ संकेत दिया है कि कांग्रेस इसे सिर्फ़ आंदोलन नहीं, बल्कि चुनावी एजेंडा बनाने वाली है। उनका मानना है कि इस बार युवा ही सत्ता परिवर्तन की सबसे बड़ी ताकत साबित होंगे।
नतीजा क्या निकल सकता है?
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अगर सरकार जल्द कदम उठाती है और युवाओं को रोजगार व न्याय दिलाने की दिशा में ठोस पहल करती है, तो नुकसान सीमित रह सकता है।
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लेकिन अगर वही रवैया जारी रहा, तो विपक्ष इस मुद्दे को पूरे चुनाव अभियान में भुनाने से पीछे नहीं हटेगा।
निष्कर्ष
बिहार की सियासत अब सीधी टक्कर पर खड़ी है— एक तरफ सत्ता पक्ष है जो अपनी नीतियों और फैसलों का बचाव कर रहा है, दूसरी ओर विपक्ष है जो युवाओं के असंतोष को जनसमर्थन में बदलना चाहता है। पटना की सड़कों पर गूंजती लाठियों ने इस टक्कर को और तेज़ कर दिया है। राहुल गांधी का बयान केवल नाराजगी नहीं, बल्कि चुनावी चुनौती का ऐलान है।

