बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का माहौल गरम है। एक ओर महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) है, तो दूसरी ओर एनडीए। 2020 के नतीजों को आधार मानें तो महागठबंधन मजबूत दिखता है, लेकिन अंदरूनी खींचतान तस्वीर को धुंधला कर देती है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि कांग्रेस आखिर तेजस्वी यादव को महागठबंधन का सीएम चेहरा मानने से क्यों बार-बार पीछे हट रही है?
कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन और आत्मविश्वास
2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिहार में केवल 9 सीटों पर चुनाव लड़ा और 3 सीटें जीत लीं। पप्पू यादव की जीत को भी जोड़ लिया जाए तो यह आंकड़ा 4 तक पहुंचता है। वहीं आरजेडी ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल 4 सीटें जीत पाई। साफ है कि जीत का औसत कांग्रेस का आरजेडी से कहीं बेहतर रहा। यही वजह है कि कांग्रेस अब खुद को ‘छोटी पार्टनर’ नहीं मान रही, बल्कि बिहार में बड़ी भूमिका चाह रही है।
राहुल-तेजस्वी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ और संदेश
हाल ही में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने मिलकर लंबी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकाली। जनता का खूब समर्थन भी मिला, लेकिन यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने एक बार भी तेजस्वी को सीएम कैंडिडेट के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया। तेजस्वी खुद को बार-बार सीएम फेस बताते रहे, लेकिन कांग्रेस ने चुप्पी साधे रखी। यहां तक कि कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावेरू ने साफ कहा – “सीएम जनता तय करेगी।”
रणनीति: दबाव और सीट बंटवारा
2020 में आरजेडी ने कांग्रेस को 70 सीटें दी थीं, लेकिन इनमें से ज्यादातर सीटें हारने वाली थीं। इस बार कांग्रेस सीट बंटवारे में ज्यादा दमदारी दिखा रही है। वह उन क्षेत्रों में टिकट चाहती है जहां उसका जनाधार मजबूत है या जहां मुस्लिम और दलित वोट निर्णायक हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस अभी तेजस्वी को सीएम मान लेती है, तो सीटों पर सौदेबाजी की उसकी ताकत कमजोर हो जाएगी। इसलिए यह कांग्रेस की एक रणनीतिक चाल भी है कि वह तेजस्वी को फेस स्वीकार करने से बच रही है।
तेजस्वी की छवि और ‘जंगलराज’ का नैरेटिव
तेजस्वी यादव युवा और लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन उनकी छवि पर सवाल उठते रहे हैं। लालू यादव के शासनकाल का ‘जंगलराज’ नैरेटिव आज भी बिहार की राजनीति में जिंदा है। भ्रष्टाचार के आरोप, चल रहे केस और लालू परिवार की छवि कांग्रेस को असहज कर सकती है। कांग्रेस मानती है कि अगर तेजस्वी को चेहरा बनाया गया तो NDA इसे भुनाकर चुनाव में बढ़त बना सकता है।
कांग्रेस की रणनीति: तटस्थ चेहरा या बिना चेहरा
कांग्रेस चाहती है कि या तो गठबंधन में कोई तटस्थ चेहरा आगे आए, या फिर चुनाव बिना किसी आधिकारिक सीएम उम्मीदवार के लड़ा जाए। चुनाव के बाद विधायक दल की राय से सीएम चुना जाए। इससे कांग्रेस को ज्यादा bargaining power मिलेगी और वोटर्स को भी भ्रम में रखने का फायदा होगा।
सामाजिक और जातीय गणित
RJD का आधार यादव-मुस्लिम समुदाय है, जबकि कांग्रेस का आधार सवर्ण, दलित और कुछ OBC जातियों में फैला हुआ है। 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मुस्लिम और दलित वोटों का बड़ा समर्थन मिला। कांग्रेस मानती है कि अगर तेजस्वी को सीएम कैंडिडेट बनाया गया, तो सवर्ण और अति पिछड़े वोट उसके हाथ से निकल सकते हैं। बिहार की राजनीति में यह पैटर्न रहा है कि जहां यादव वोट जाते हैं, वहां सवर्ण और अति पिछड़ों का वोट अक्सर नहीं जाता। इसलिए कांग्रेस को लगता है कि तटस्थ चेहरा ज्यादा व्यापक समर्थन दिला सकता है।
निष्कर्ष
तेजस्वी यादव महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी के नेता हैं, लेकिन कांग्रेस उन्हें सीएम चेहरा मानने से बच रही है। वजह है – अपनी bargaining power बनाए रखना, सीटों पर मजबूत दावेदारी करना, और RJD के दबदबे को कम करना। इसके साथ ही कांग्रेस तेजस्वी की विवादास्पद छवि से दूरी बनाकर अपनी विश्वसनीयता बचाना चाहती है। यही रणनीति महागठबंधन की एकता को चुनौती भी दे सकती है और NDA के लिए अवसर भी खोल सकती है।

