बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर राजनीतिक खींचतान तेज हो गई है। इस बार कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर कई जटिलताएं सामने आ रही हैं। हाल ही में इस मुद्दे पर होने वाली दो अहम बैठकें टल गईं, जिससे सीट बंटवारे की प्रक्रिया और पेचीदा होती जा रही है।
कांग्रेस के लिए इस बार का समीकरण पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 के फॉर्मूले पर आधारित है। पार्टी का मानना है कि उसे वही सीटें मिलनी चाहिए जहां उसने 2020 में अच्छी पकड़ बनाई थी या जहां हार का अंतर न्यूनतम था। बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू के अनुसार, ‘गुड’ सीटें वे हैं जहां कांग्रेस ने 2020 में जीत हासिल की या हार का अंतर 5,000 वोटों से कम था।’
कांग्रेस का कहना है कि इस बार सिर्फ वही सीटें नहीं मिलनी चाहिए जहां सहयोगी दलों या आरजेडी ने पहले हार झेली है। पार्टी 2020 में जीती 19 सीटों के अलावा उन आठ सीटों पर भी दावेदारी कर रही है जहां चुनाव बहुत करीब रहा था। इसके पीछे तर्क यही है कि राहुल गांधी की ‘वोट अधिकार यात्रा’ से कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है और इन सीटों पर जीत की संभावना बढ़ गई है।
आरजेडी के लिए चुनौती
आरजेडी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि 2020 का फॉर्मूला उनके लिए पूरी तरह से सही साबित नहीं हुआ था। उस समय आरजेडी ने अपनी 10 जीतने वाली सीटें सहयोगियों को दी थीं, लेकिन इससे उनके स्थानीय नेताओं का मनोबल टूटा और उन्होंने गठबंधन के उम्मीदवारों के खिलाफ काम किया। इस अनुभव को देखते हुए आरजेडी इस बार सतर्क है और सीट बंटवारे में संतुलन बनाए रखना चाहती है।
इस बार महागठबंधन में आठ दल शामिल हैं। इसमें विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) जैसे नए सहयोगी भी शामिल हैं। इससे सीटों के बंटवारे की जटिलता और बढ़ गई है।
आरजेडी का खुद का आंकलन है कि उसके पास 92 ‘गुड’ सीटें हैं। 2020 में आरजेडी ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से 75 पर जीत हासिल हुई थी और 17 सीटों पर हार का अंतर केवल 5,000 वोट से कम था। इस आधार पर आरजेडी इस बार सीट बंटवारे में अपनी स्थिति मजबूत रखना चाहती है।
कांग्रेस का रुख
कांग्रेस का मुख्य लक्ष्य महागठबंधन के जरिए एनडीए को हराना है। बिहार प्रभारी कांग्रेस महासचिव शाहनवाज आलम ने कहा है कि गठबंधन में कभी-कभी समझौते करने पड़ते हैं, लेकिन पार्टी इस बार ‘गुड’ और ‘बैड’ सीटों के बीच संतुलन चाहती है। वीआईपी ने 40 और कांग्रेस ने 70 सीटों की मांग की है, जिससे आरजेडी के लिए संतुलन बनाना और भी मुश्किल हो गया है।
कांग्रेस के दावों के अनुसार, यदि उन्हें केवल हारने वाली या कमजोर सीटें दी जाती हैं तो यह महागठबंधन की जीत की संभावनाओं को कमजोर कर सकता है। पार्टी का यह भी मानना है कि राहुल गांधी की यात्रा ने कांग्रेस की स्थिति को मजबूत किया है और इस बार वे अधिक सक्रिय भूमिका निभाना चाहती है।
सीट बंटवारे का पेच
सीट बंटवारे को लेकर यह स्पष्ट हो गया है कि महागठबंधन में सीटों का संतुलन बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण है। आरजेडी को अपने पुराने अनुभव, नए सहयोगियों की मांगों और कांग्रेस की दावेदारी के बीच तालमेल बैठाना है। वहीं, कांग्रेस को भी 2020 के फॉर्मूले को आधार मानते हुए यह सुनिश्चित करना है कि उसे केवल कमजोर सीटें न दी जाएं, बल्कि जीत की संभावना वाली सीटें भी मिलें।
विशेषज्ञों का मानना है कि सीट बंटवारे पर तेज बहस और खींचतान आगे भी जारी रह सकती है। यदि सहयोगी दल संतुलन नहीं बैठा पाए तो महागठबंधन में अंदरूनी मतभेद भी उभर सकते हैं।
निष्कर्ष
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए महागठबंधन में सीट बंटवारे का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ है। कांग्रेस और आरजेडी दोनों ही अपने-अपने दावे मजबूत कर रही हैं। 2020 का फॉर्मूला तो अब भी आधार है, लेकिन इस बार ‘गुड’ और ‘बैड’ सीटों का संतुलन और नए सहयोगियों की मांगें इसे और पेचीदा बना रही हैं।
यह स्पष्ट है कि महागठबंधन की जीत के लिए सीट बंटवारा एक निर्णायक कारक होगा। कांग्रेस की मजबूत दावेदारी और आरजेडी का अनुभव इस चुनावी समीकरण को और दिलचस्प बना रहा है।

