बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की गहमागहमी तेज हो गई है। इस बीच कांग्रेस ने एक ऐसा कदम उठाया है जिससे चुनावी रणनीति का पूरा समीकरण बदल सकता है। पार्टी ने साफ संकेत दिया है कि इस बार वह सिर्फ संख्या की राजनीति नहीं, बल्कि जीत की गारंटी वाली सीटों पर ही दांव लगाएगी। लेकिन असली सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस ने कौन सा इलाका अपना “रणक्षेत्र” चुना है और वहां क्यों कोई समझौता करने के मूड में नहीं है?
कांग्रेस की नई रणनीति
कांग्रेस ने इस बार अपनी चुनावी रणनीति बेहद सोच-समझकर तैयार की है। 2020 में पार्टी 70 सीटों पर लड़ी थी और 19 सीटें जीत पाई थी। मगर कई सीटें ऐसी थीं जिन्हें एनडीए लगातार जीतता आ रहा था और वहां कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इसी गलती से सबक लेते हुए इस बार पार्टी 70 से कम यानी लगभग 55 से 60 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।
दिल्ली में हुई दो दिवसीय बैठक में बिहार कांग्रेस नेताओं ने पार्टी हाईकमान को उन सीटों की सूची सौंप दी है जिन पर वे चुनाव लड़ना चाहते हैं। खास बात यह है कि ये वही सीटें हैं जहां या तो कांग्रेस वर्तमान में विधायक है या फिर पिछली बार दूसरे नंबर पर रही थी। कांग्रेस का मकसद इस बार सिर्फ उन इलाकों को चुनना है जहां जीत की संभावना सबसे अधिक हो।
राहुल गांधी की यात्रा और कांग्रेस की तैयारी
राहुल गांधी की हालिया “वोट अधिकार यात्रा” के बाद कांग्रेस ने सीट शेयरिंग का अपना खाका और साफ कर लिया है। इस यात्रा ने पार्टी कार्यकर्ताओं को नई ऊर्जा दी है और अब कांग्रेस का फोकस उन क्षेत्रों पर है जहां उसका पारंपरिक वोटबैंक मौजूद है।
सीमांचल पर कांग्रेस का फोकस
कांग्रेस ने इस बार साफ कर दिया है कि सीमांचल की सीटों पर कोई समझौता नहीं होगा। सीमांचल यानी कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और अररिया जैसे जिले, जहां मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है और दलित मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
कांग्रेस का मानना है कि यह उसका असली “रणक्षेत्र” है। यही कारण है कि पार्टी ने सीमांचल की 26 विधानसभा सीटों में से 16 पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई है। कांग्रेस को भरोसा है कि यहां से मजबूत प्रदर्शन करके वह विधानसभा में अपनी स्थिति को मज़बूत कर सकती है।
एम-डी (मुस्लिम-दलित) समीकरण
कांग्रेस ने अपने कोर वोटबैंक पर फोकस करते हुए एम-डी यानी मुस्लिम-दलित समीकरण को चुनावी हथियार बनाया है। 2024 के चुनावों में भी पार्टी को फायदा उन्हीं सीटों पर मिला था जहां यह समीकरण मजबूत था। यही कारण है कि इस बार भी कांग्रेस उन इलाकों पर ही ज्यादा जोर दे रही है।
पिछली गलतियों से सबक
2020 के चुनाव में कांग्रेस को जो 70 सीटें आरजेडी ने दी थीं, उनमें से 45 सीटें ऐसी थीं जहां एनडीए का गढ़ बेहद मजबूत था। यहां कांग्रेस और आरजेडी दोनों ही लंबे समय से जीत नहीं पाई थीं। कांग्रेस इस बार ऐसी सीटों से बचना चाहती है और केवल उन्हीं क्षेत्रों में लड़ना चाहती है जहां उसकी स्थिति मजबूत हो।
कांग्रेस का आत्मविश्वास
कांग्रेस का आत्मविश्वास सीमांचल में उसके तीन सांसदों से भी झलकता है। कटिहार से तारिक अनवर, किशनगंज से डॉ. मो. जावेद और पूर्णिया से पप्पू यादव सांसद हैं। यही वजह है कि कांग्रेस को भरोसा है कि सीमांचल में उसका जनाधार मजबूत है और इस इलाक़े को छोड़कर चुनाव लड़ना उसकी रणनीति को कमजोर कर देगा।
सीट बंटवारे पर बयान
सीट शेयरिंग को लेकर बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने साफ कहा है कि गठबंधन में नए साथी जुड़े हैं तो सबको समझौता करना होगा। हर प्रदेश में अच्छी और खराब सीटें होती हैं, इसलिए बंटवारे में दोनों का ध्यान रखना ज़रूरी है। उन्होंने भरोसा जताया कि 15 सितंबर तक सीट बंटवारे पर अंतिम फैसला हो जाएगा। अल्लावरू के बयान से यह साफ है कि कांग्रेस लचीलापन दिखाने को तैयार है, लेकिन संख्या के बजाय सिर्फ “विनिंग सीट्स” पर ही चुनाव लड़ेगी।
निष्कर्ष
कांग्रेस ने इस बार बिहार चुनाव को लेकर अपनी प्राथमिकताएँ तय कर ली हैं। पार्टी सीमांचल को अपना “रणक्षेत्र” मान चुकी है और वहां किसी भी कीमत पर समझौते के लिए तैयार नहीं है। सवाल यही है कि महागठबंधन के बड़े साथी, खासकर आरजेडी, कांग्रेस की इस जिद को मानते हैं या फिर सीट शेयरिंग की खींचतान नए संकट को जन्म देगी।

