बिहार विधानसभा चुनाव 2005 से 2020: सीट और वोट प्रतिशत की पूरी तस्वीर

Shubhra Sharma
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बिहार की राजनीति हमेशा से ही बदलाव और गठबंधन के उतार-चढ़ाव से भरी रही है। 2005 से 2020 तक पाँच विधानसभा चुनाव हुए और हर बार जनता ने अलग संदेश दिया। कभी बिखरे जनादेश से सरकार नहीं बन पाई, तो कभी गठबंधन की ताकत ने रेकॉर्ड बहुमत दिलाया। आइए, हर चुनाव को विस्तार से समझते हैं।

फरवरी 2005 चुनाव: अधूरा जनादेश और हंग असेंबली

फरवरी 2005 का चुनाव बिहार की राजनीति में बड़ी हलचल लेकर आया। इस बार किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी, उसे 75 सीटें और 25.07% वोट मिले। जेडीयू को 55 सीटें और लगभग 14.5% वोट मिले, जबकि बीजेपी 37 सीटें और 11% वोट के साथ तीसरे नंबर पर रही। एलजेपी को 12.6% वोट तो मिले लेकिन सीटें केवल 29 आईं। कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा, उसे 10 सीटें और लगभग 5% वोट मिले। बिखरे हुए नतीजों की वजह से सरकार बन नहीं सकी और विधानसभा भंग कर दी गई।

अक्टूबर–नवंबर 2005 चुनाव: नीतीश कुमार का उभार

इसी साल दोबारा चुनाव कराए गए और जनता ने इस बार साफ जनादेश दिया। नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए को बड़ी सफलता मिली। जेडीयू ने 88 सीटें और 20.5% वोट हासिल किए, जबकि बीजेपी को 55 सीटें और 15.6% वोट मिले। दोनों मिलकर एनडीए ने 143 सीटों पर कब्जा कर लिया और बहुमत के पार पहुँच गया। दूसरी ओर आरजेडी को 54 सीटें और 23.4% वोट मिले, यानी वोट तो अच्छे मिले लेकिन सीटें कम पड़ गईं। एलजेपी और कांग्रेस का प्रदर्शन भी फीका रहा। यह चुनाव दिखाता है कि गठबंधन ने कैसे जनादेश को अपनी तरफ मोड़ लिया।

2010 चुनाव: एनडीए की ऐतिहासिक जीत

2010 का चुनाव नीतीश कुमार और बीजेपी गठबंधन के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। जनता ने उन्हें भारी समर्थन दिया। जेडीयू को 115 सीटें और 22.6% वोट मिले, वहीं बीजेपी ने 91 सीटें और 16.5% वोट अपने नाम किए। दोनों मिलकर एनडीए ने 206 सीटें हासिल कीं, जो विधानसभा का तीन-चौथाई हिस्सा था। इसके मुकाबले आरजेडी को 22 सीटें और 18.8% वोट ही मिल पाए। कांग्रेस को 4 सीटें और 8.4% वोट मिले। यह चुनाव दिखाता है कि जब जनता गठबंधन के पक्ष में एकजुट होती है, तो नतीजे ऐतिहासिक बन जाते हैं।

2015 चुनाव: महागठबंधन की वापसी

2015 में बिहार की राजनीति ने करवट ली। नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होकर लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया। इसका असर नतीजों में साफ दिखाई दिया। आरजेडी को 80 सीटें और 18.4% वोट मिले, जेडीयू ने 71 सीटें और 16.8% वोट हासिल किए, जबकि कांग्रेस को 27 सीटें और 6.7% वोट मिले। तीनों मिलकर महागठबंधन ने 178 सीटों पर जीत दर्ज की। दूसरी तरफ बीजेपी को सबसे ज़्यादा यानी 24.4% वोट मिले, लेकिन सीटें सिर्फ 53 पर सिमट गईं। यह चुनाव इस बात का सबूत है कि मजबूत गठबंधन सीटों के समीकरण में बड़ी भूमिका निभाता है।

2020 चुनाव: कांटे की टक्कर

2020 का चुनाव बेहद रोमांचक रहा। आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, उसे 75 सीटें और 23.1% वोट मिले। बीजेपी लगभग बराबरी पर रही, उसने 74 सीटें और 19.5% वोट जीते। जेडीयू का प्रदर्शन कमजोर रहा और उसे सिर्फ 43 सीटें और 15.4% वोट मिले। कांग्रेस को 19 सीटें और 9.5% वोट मिले, वहीं वामदलों ने 16 सीटों पर जीत दर्ज कर नई ताकत दिखाई। कुल मिलाकर एनडीए को 125 सीटें और महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं। दिलचस्प यह रहा कि दोनों गठबंधनों का वोट प्रतिशत लगभग बराबर (करीब 37.2%) रहा, लेकिन मामूली अंतर ने सत्ता का ताज एनडीए के सिर पर रखा।

2025 चुनाव: संभावनाओं की तस्वीर

2025 का चुनाव भी बिहार की राजनीति में जोरदार मुकाबला लेकर आ रहा है। शुरुआती आकलनों के अनुसार, इस बार एनडीए मज़बूत स्थिति में दिखाई दे रहा है। खासकर भाजपा के प्रदर्शन में बड़ी बढ़त का अनुमान है। भाजपा अकेले ही लगभग 80 सीटों तक पहुँच सकती है, जबकि जेडीयू की स्थिति कमजोर होती दिख रही है और उसके लिए 30 सीटों से ज़्यादा पाना मुश्किल माना जा रहा है। दोनों दल मिलकर एनडीए को कुल 130 से 136 सीटों तक पहुँचा सकते हैं।

महागठबंधन की ओर से आरजेडी का असर बना रहेगा, लेकिन सीटों का आंकड़ा करीब 50 पर सिमटने की संभावना है। कांग्रेस भी 10 सीटों के आसपास ही रह सकती है। इस तरह पूरे महागठबंधन का कुल आंकड़ा 75 से 100 सीटों के बीच रहने का अनुमान है।

वोट प्रतिशत में भी एनडीए को महागठबंधन पर लगभग 13 प्रतिशत की बढ़त मिलने की संभावना जताई गई है। भाजपा का वोट शेयर लगातार बढ़ रहा है, वहीं जेडीयू अपने परंपरागत आधार को बचाने में संघर्षरत है। आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे लोकप्रिय चेहरा बने हुए हैं, लेकिन सीटों के हिसाब से उनकी पार्टी सत्ता तक पहुँचती नहीं दिख रही।

इन रुझानों से साफ है कि 2025 में भी बिहार की राजनीति में गठबंधन और सीटों का गणित सबसे बड़ा फैक्टर रहेगा। भाजपा का उभार, जेडीयू की कमजोरी और आरजेडी की स्थायी मौजूदगी मिलकर एक बार फिर सत्ता की बागडोर एनडीए के हाथों में सौंप सकते हैं।

निष्कर्ष

पाँच चुनावों की यह यात्रा बताती है कि बिहार की राजनीति में वोट प्रतिशत से ज़्यादा मायने गठबंधन और सीटों का गणित रखते हैं। कभी बिखरे जनादेश से अस्थिरता आई, कभी गठबंधन की ताकत ने ऐतिहासिक जीत दिलाई और कभी मामूली वोट अंतर से सरकार बन गई। यही वजह है कि बिहार के चुनाव हमेशा देशभर की राजनीति का केंद्र बने रहते हैं।

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