बिहार 2025: कौन जीतेगा? सीट बंटवारे और दो-दो विधायक वाला रोमांच!

Shubhra Sharma
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बिहार चुनाव 2025 की रेस अब पूरी तरह तेज़ हो चुकी है। महागठबंधन और एनडीए दोनों ही गठबंधन अपनी ताकत और रणनीति दिखाने में लगे हैं। सियासी माहौल हर दिन बदल रहा है, और वोटरों की नब्ज़ पर नजर रखने के लिए हर दल ने कमर कस ली है। चुनाव से पहले सबसे बड़ा सवाल है – कौन किस सीट पर उतरेगा और आखिर कौन जीतेगा? महागठबंधन में सीट बंटवारे पर फैसला 15 सितंबर तक होने की संभावना है, जबकि एनडीए में भी सीटों को लेकर खींचतान तेज हो गई है।

दो-दो विधायक वाला चुनावी इतिहास

बिहार के चुनावी इतिहास में कई दिलचस्प और अनोखे पहलू रहे हैं। 1957 के विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसे विधानसभा क्षेत्र थे जहां दो-दो विधायक चुने जाते थे। इस व्यवस्था का उद्देश्य था कि अनुसूचित जाति और जनजातियों को उचित प्रतिनिधित्व मिले।

उदाहरण के लिए, पटना जिले की फतुहा और मसौढ़ी सीटें उस समय दो-दो विधायक वाली थीं। फतुहा से शिव महादेव प्रसाद और केशव प्रसाद, जबकि मसौढ़ी से नवल किशोर सिंह और सरस्वती चौधरी निर्वाचित हुए थे। उस दौर में मतदान प्रणाली भी इस हिसाब से अलग थी, ताकि सामान्य और आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए अलग मतपत्र हो।

महिलाओं की बढ़ती भागीदारी

1957 के चुनाव में महिलाओं की संख्या विधानसभा में बढ़कर 46 तक पहुंच गई थी। यह उस समय राजनीतिक जागरूकता और महिला सशक्तिकरण का संकेत था। आज भी बिहार में महिला मतदाता और उम्मीदवारों की भागीदारी चुनाव को और रोमांचक बनाती है। हर चुनाव में महिला वोटों की भूमिका निर्णायक होती है।

सीटों और आरक्षण का महत्व

संयुक्त बिहार में कुल 264 विधानसभा क्षेत्र थे, जिनमें से 68 सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित थीं। इनमें से कई सीटों पर दो-दो विधायक चुने जाते थे। यह व्यवस्था सुनिश्चित करती थी कि समाज के सभी वर्गों को न्यायसंगत प्रतिनिधित्व मिले।

ऐतिहासिक तौर पर, इन सीटों पर अधिकांश चुनाव कांग्रेस के उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। दो-दो विधायक वाली सीटों में प्रमुख क्षेत्र थे: बगहा, बेतिया, मोतिहारी, फतुहा, मसौढ़ी, राजगीर, झाझा, जमुई, खगड़िया, बेगूसराय, रांची, गिरिडीह और अन्य।

2025 में सीट बंटवारा और गठबंधन

आज, बिहार चुनाव 2025 में सीटों के बंटवारे को लेकर सभी दल सक्रिय हैं। महागठबंधन में कौन-कौन सी सीट किस पार्टी को मिलेगी, इस पर फैसला 15 सितंबर तक होने की संभावना है। वहीं एनडीए में भी कुछ सीटों को लेकर असहमति और खींचतान देखने को मिल रही है।

सियासी विश्लेषक मानते हैं कि इस बार चुनाव गठबंधन की ताकत, उम्मीदवारों की लोकप्रियता और वोटरों की सक्रिय भागीदारी से तय होगा। पिछले चुनावों के अनुभव और मतदाताओं के रुझान चुनाव के परिणाम में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

मतदाता और मतदान

बिहार में मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है। 1957 के चुनाव में भी मतदाताओं की संख्या में लगभग 11 लाख का इज़ाफा हुआ था और मतदान प्रतिशत में लगभग 2% की वृद्धि देखी गई थी। 2025 में भी यह उम्मीद है कि मतदाता अपनी सक्रिय भागीदारी से चुनाव का स्वरूप तय करेंगे।

निष्कर्ष

बिहार चुनाव 2025 केवल वोटों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह गठबंधन, रणनीति, और राजनीतिक जागरूकता की भी कहानी है। दो-दो विधायक वाली सीटों का इतिहास, महिला भागीदारी और आरक्षण व्यवस्था यह दर्शाते हैं कि बिहार के चुनाव हमेशा से रोमांचक रहे हैं।

इस चुनाव में हर पार्टी अपनी रणनीति और उम्मीदवारों की ताकत पर निर्भर करेगी। चुनावी नतीजे तय करेंगे कि कौन सत्ता में बनेगा और बिहार के भविष्य का नेतृत्व किसके हाथ में आएगा।

बिहार के मतदाता इस बार भी अपनी पसंद और समझदारी से तय करेंगे कि कौन से दल और गठबंधन उनके विश्वास पर खरा उतरते हैं।

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