Assembly elections 2023:मध्यप्रदेश में चुनाव है यहां पर सीधे तौर पर कांग्रेस – भाजपा में फाइट होती हैं। वर्तमान परिस्थितियों में देखें तो इस बार दोनों दलों के बीच कांटे टक्कर देखने मिलेगा। इस बार मध्यप्रदेश के रणभूमि बिगुल बजने से काफी पहले ही बीजेपी ने एमपी के उम्मीदवारों का पहला लिस्ट जारी कर दिया, वहीं कांग्रेस ने चुनाव ऐलान होने के बाद लिस्ट जारी कर रहा है। बीजेपी ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि पार्टी को इस पुर्व अंतिम पलों में बगावत कारण हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन भाजपा के लाख कोशिश करने के बाद भी इस बार भी पार्टी में बग़ावत को नहीं रोक पाईं है यूं कहिए कि बीजेपी के लिए बाग़ी नेता चुनौती बन गया है।
Assembly elections 2023
मध्यप्रदेश में चुनावी मुद्दे
जैसा कि आप जानते हैं कि विधानसभा के चुनाव में स्थानीय मुद्दे हाबी रहते हैं। बेरोज़गारी, ग़रीबी और इस बार मध्यप्रदेश में दलित और ओबीसी एकजुट हो रहें तों वहीं स्वर्ण समाज भी बीजेपी से उतना ख़ुश नज़र नहीं आ रहा है। सबसे पहले आपको हम मध्यप्रदेश के जातिगत समीकरण से रूबरू करवाते हैं|
ओबीसी | 50.09% |
एससी एसटी | 36.7% |
स्वर्ण | 15 से 20 % |
इन विस्तृत आंकड़ों से आप समझ पा रहे हैं कि जातिगत समीकरण में ओबीसी और दलित वोटर अगर एकजुट हो जाएं तो मध्यप्रदेश के सियासत उसी दिशा तरफ़ बढ़ चलेगा क्योंकि ये दोनों साथ आएं क़रीब 87% वोट शेयर उस पार्टी को मिल जाएगा। इसी बात से आप समझ सकते हैं कि कैसे मध्यप्रदेश चुनाव में ओबीसी और दलित वोटर एकजुट हुए तो वो सरकार बना भी सकते हैं या फिर बदल सकते हैं। लेकिन यहां पर सवर्ण समाज के वोटरों को भी कम ना समझे क्योंकि ये वोटर इस चुनाव में गेम्स चेंजर ही नहीं बल्कि कि किंग मेकर बन सकते हैं।
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सवर्ण समाज नाराजगी भाजपा सफाया हो 2018
ऐसे कई सीटों पर जहां पर स्वर्ण जातियां महत्वपूर्ण भुमिका निभाता है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा अगर 109 सीटों पर सिमट गया तो इसमें महत्वपूर्ण भुमिका सवर्ण जाति का ही था । सवर्ण समाज लोगों में एससी एसटी एक्ट लेकर आएं सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को बीजेपी सरकार ने पलट दिया तो उसका नतीजा ये रहा कि पिछले चुनाव बीजेपी का सफाया हो गया है। लेकिन इस बार बीजेपी वो गलतियां नहीं दोहराना चाहतीं हैं। इसलिए इस बार बीजेपी ने नये रणनीति तहत कमज़ोर सीटों पर मंत्रियों को चुनाव लड़वा रहीं है।
पिछले चुनाव के सीटों का आंकड़ा
पिछले चुनाव के सीटों पर नज़र डालेंगे लेकिन उस पहले आपको बता दें कि मध्यप्रदेश में 2018 में टोटल वोट प्रतिशत 75 प्रतिशत क़रीब हुआ था जबकि इसमें 41 प्रतिशत बीजेपी और कांग्रेस को 40 प्रतिशत वोट मिला था। बीजेपी को भले ही वोट प्रतिशत अधिक मिला था लेकिन फिर भी बीजेपी सरकार नहीं बना पाईं थीं।
230 विधायक सीट
बीजेपी | कांग्रेस | अन्य |
109 | 114 | 07 |
2018 में सवर्णों की नाराज़गी कारण बीजेपी को बड़ा झटका मध्यप्रदेश चुनाव में लग गया इस चुनाव में बीजेपी सरकार गंवा दिया। करीब दो सालों के बाद जब कांग्रेस में टुट हुईं उसके बाद फिर से बीजेपी सत्ता में वापस आ गई।
मध्यप्रदेश में ग़रीबी और प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े
मध्यप्रदेश में ग़रीबी क़रीब 20.6 प्रतिशत है , सरकार के ही एक डाटा के मानें तो क़रीब 15.94 प्रतिशत लोग ग़रीबी से निकल चुके हैं। यानी मध्यप्रदेश में ग़रीबी घटी है वहीं बात करें प्रति व्यक्ति आय के तो 2001 के में मध्यप्रदेश में प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 11 हजार 718 रूपए वहीं उसके बाद 2011 में बढ़कर 38 हजार 497 रूपये हो गया। और अब 2022 और 2023 में प्रति व्यक्ति आय एक लाख 40 हजार 543 हो गया है।
बेरोज़गारी के आंकड़े
पिछले तीन सालों में मौजुदा मध्यप्रदेश सरकार बस 21 लोगों को रोजगार दे सकीं, इस बात का खुलासा मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया करना पड़ा जिन्होंने स्पष्ट तौर विधानसभा में विपक्ष कांग्रेस के विधायक मेवाराम जातव ने MP Govt Jobs और Unemployment को लेकर सवाल पूछा, तब सिंधिया को जवाब देना पड़ा।यशोधरा राजे सिंधिया लिखित उत्तर में बताया कि ‘अब तक मौजूद आंकड़ों के अनुसार से राज्य में 39 लाख युवा बेरोजगार हैं।
जबकि 2020 से अब तक 21 युवाओं को ही मध्यप्रदेश सरकारी ने नौकरी दी गई है।अगर सालभर पहले की बात करें तो 1 अप्रैल 2022 को जारी आंकड़ों में मध्यप्रदेश में बेरोजगार युवाओं की संख्या 25.8 लाख थी।इनमें से ज्यादातर सामान्य वर्ग और ओबीसी कैटेगरी से थे।
क्षेत्रीय दल बिगाड़ सकते हैं खेल
इस बार के चुनाव में क्षेत्रीय दल अगर एकजुट हो गये तो कांग्रेस और बीजेपी का खेल बिगाड़ सकते वैसे एमपी कांग्रेस -बिजेपी के बीच का लड़ाई होता लेकिन अब धीरे धीरे क्षेत्रीय दल जाति या फिर धार्मिक समीकरण बनाकर उभर रहे हैं। जैसे कि पिछले चुनाव के ही आंकड़ा देखते हैं,पिछले चुनाव में 30 सीटें ऐसे थी जिसमें जीत या हार का अंतर 3 हजार से भी कम वोटों का था। इन सीटों में से 15 कांग्रेस जीती, 14 पर बीजेपी और बीएसपी 1 सीट जीती वहीं इन सभी सीटों पर जीत और हार के बीच जो अंतर कम था वो क्षेत्रीय दलों कारण ही।
2013 में ऐसे सीटों संख्या 30
2013 में 33 ऐसी सीटें थी, जहां जीत और हार का अंतर 3000 वोट से कम था। इनमें बीजेपी 18, कांग्रेस 12 और बीएसपी दो और निर्दलीय को एक सीट पर जीत मिली थी यानी 2013 के मुकाबले 2018 में ऐसे सीटों का संख्या कम जरूर हुईं लेकिन अगर पिछड़ी जाति और दलित एकजुट हो गये तब यहां पर बड़ा खेल हो सकता है।
मध्यप्रदेश में मुस्लिम वोटर किसके तरफ़
आम तौर जब भी मुस्लिम वोटरों की बात की जाती तब यहीं कहा जाता है कि मुस्लिम वोटर भाजपा तरफ़ तो नहीं जाएंगी और ऐसा होता भी अब मध्यप्रदेश में मुस्लिम वोटर किस तरफ़ जाएंगे उस पहले आपको 2018 आंकड़े बताएंगे लेकिन उस पहले आपको हम बताते हैं कि मध्यप्रदेश में मुस्लिम क़रीब 9 प्रतिशत है जबकि सीटों में आंकड़ा देखें तो 47 सीटों मुस्लिम वोटों प्रभाव है और 22 सीट ऐसे जिसमें जीत या हार का फैसला मुस्लिम वोटर तय करते हैं। वैसे मध्यप्रदेश के सियास में मुस्लिम वोटर उतना महत्वपूर्ण भुमिका नहीं निभारते है लेकिन राजनीति में एक सीट भी काफी महत्वपूर्ण हो जातीं हैं।
2018 में मुस्लिम किसके साथ
2018 में बस पांच मुस्लिम विधायक ही चुनाव जीत सकें, मुस्लिम वोटरों का जो रूख़ वो बीजेपी के विरुद्ध ही रहता है। पिछले चुनाव देखें तो बीजेपी को मुस्लिम वोटर ना के बराबर ही मिलें हैं वहीं इस बार मध्यप्रदेश चुनाव में क़रीब 40 लाख वोटर मुस्लिम है ये मुस्लिम वोटर भी गेम्स चेंजर या फिर किंग मेकर बनकर उभर सकते। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ज्यादातर मुस्लिम वोटर भाजपा विरूद्ध ही वोट करेंगे लेकिन यहां पर ये समझना जरूरी है कि मध्यप्रदेश के राजनीति में मुस्लिम वोटर उतना महत्वपूर्ण भुमिका नहीं निभारते जितना कि उत्तर प्रदेश और बिहार में निभारते है इसी विषय वरिष्ठ पत्रकार गिरजा शंकर ने कहा कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार की तरह मुस्लिम वोट मध्य प्रदेश की राजनीति को खास प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन बुरहानपुर, आष्टा, रतलाम और इंदौर में अल्पसंख्यक मतदाता प्रभावशाली हैं और जहां तक उनके वोट की सघनता का सवाल है।
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चुनावी मुद्दे
इस बार मध्यप्रदेश में महिला आरक्षण बड़ा मुद्दा बन के उभर रहा है जैसा कि आप जानते हैं कि हाल में ही केन्द्र की सरकार ने नारी शक्ति वंदन विधेयक लेकिन उसमें ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण नहीं जिसे कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में बड़ा मुद्दा बना दिया वहीं शिवराज सिंह चौहान ने भी लाडली बहना योजना ज़रिए महिलाओं को हर महीने 1250 रुपये दिए जा रहे वहीं 450 रूपये रसोई गैस सिलेंडर के लिए मध्यप्रदेश के सरकार दे रहीं इन्हीं कारणों से जो मध्यप्रदेश में बीजेपी को हार का भय लग रहा वहीं मध्यप्रदेश में बीजेपी अब जीत तरफ़ अपने क़दम बढ़ा चुकी है।
दलित में नाराजगी
मध्यप्रदेश में दलितों के साथ हुए अमानवीय कृत्य कारण से जो दलितों में नाराजगी उभर रहा था वो शिवराज सिंह चौहान के बुलडोजर एक्शन कारण कम तो हुआ लेकिन 35 प्रतिशत से ज्यादा एससी एसटी वोटर किस तरफ़ जाएंगे ये कहना अभी कठिन है।
इस बार किसका सरकार एमपी
पिछले बार एमपी बदलाव की हवा चल रहा था लेकिन इस बार ऐसा कोई हवा नहीं चल रहा है। बल्कि इस बार दोनों हीं दलों में टक्कर का मुकाबला नज़र आ रहा है। पिछले चुनाव के आंकड़ों देखें तो एमपी में कांग्रेस 40 प्रतिशत और भाजपा 41 प्रतिशत वोट मिला था। लेकिन इस बार मध्यप्रदेश के राजनीति को आप पिछड़ी बार से तुलना नहीं कर सकते हैं क्योंकि जहां पिछड़ी में सवर्ण समाज के लोग नाराज़ चल रहें वहीं ऐसा कोई भाजपा खिलाफ नहीं है।
मध्यप्रदेश के 230 सीटों में किसे कितना?
मध्यप्रदेश में 230 सीटों में से 104 से 116 सीटें बीजेपी जीत सकती वहीं कांग्रेस की बात करें उसे इस बार 103 से 115 सीटें मिल सकती है इसके अन्य बात करें तो अन्य को 11 से 13 सीटें मिल सकती लेकिन अनुमान वर्तमान परिस्थितियों पर आगे बदल भी सकता है।