गठबंधन का दरवाज़ा बंद… AIMIM की दस्तक तेज, लेकिन RJD क्यों नहीं मान रही?

Shubhra Sharma
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है। इसी बीच असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) लगातार कोशिश कर रही है कि वह विपक्षी INDIA ब्लॉक यानी महागठबंधन का हिस्सा बन सके। पर आरजेडी और कांग्रेस दोनों ही इस गठबंधन में AIMIM को शामिल करने के लिए तैयार नहीं हैं। सवाल उठता है कि आखिर ओवैसी की पार्टी क्यों इतनी बेचैन है और विपक्षी दल उन्हें क्यों नकार रहे हैं?


लालू यादव के दरवाजे पर दस्तक

AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने पहले तो गठबंधन को लेकर पत्र लिखा और गुहार लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद वे अपने समर्थकों के साथ खुद लालू प्रसाद यादव के पटना स्थित आवास पर पहुँच गए। वहां उन्होंने नारे लगाए – “लालू-तेजस्वी अपने कान खोल, तेरे दरवाजे पर बज रहा है ढोल, गठबंधन के लिए अपना दरवाजा खोल।”

इसके बावजूद न तो लालू यादव ने घर का दरवाजा खोला और न ही गठबंधन का। AIMIM केवल 6 सीटों की मांग कर रही थी, लेकिन RJD और कांग्रेस इस पर भी तैयार नहीं दिखे।


AIMIM का तर्क

अख्तरुल ईमान ने साफ कहा कि हमारा मकसद सत्ता हासिल करना नहीं, बल्कि सांप्रदायिक ताकतों को रोकना है। उन्होंने दावा किया कि अकेली कोई पार्टी भाजपा और एनडीए को हराने में सक्षम नहीं है। अगर AIMIM को गठबंधन में शामिल नहीं किया गया तो वोट बंट जाएंगे और फायदा भाजपा को होगा।

ईमान का कहना था कि हमने कोई मुख्यमंत्री पद या मंत्रालय नहीं माँगा, सिर्फ 6 सीटों की डिमांड रखी। यहां तक कि चार विधायकों को RJD द्वारा तोड़ लेने के बावजूद हम गठबंधन को तैयार हैं क्योंकि हम नहीं चाहते कि बिहार की जनता को नुकसान हो।


कांग्रेस और आरजेडी का इनकार

आरजेडी और कांग्रेस AIMIM को शामिल करने के मूड में नहीं हैं। कांग्रेस के प्रभारी कृष्ण अल्लावरू ने इस मुद्दे को सीधे लालू यादव के पाले में डाल दिया। वहीं, आरजेडी के सांसद मनोज झा ने कहा कि अगर ओवैसी सचमुच भाजपा को हराना चाहते हैं तो उन्हें खुद चुनाव लड़ने के बजाय महागठबंधन को समर्थन देना चाहिए।

दरअसल, विपक्षी दलों को लगता है कि AIMIM को साथ लेने से नुकसान ज्यादा होगा। ओवैसी की छवि कट्टर मुस्लिम नेता की है। उनके भाषणों से हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है, जिससे भाजपा को अप्रत्यक्ष फायदा मिल जाएगा।


ओवैसी की बेचैनी क्यों?

अब बड़ा सवाल यही है कि ओवैसी और उनकी पार्टी इतनी बेचैन क्यों है? असल में, बिहार की सियासत इस बार सीधी लड़ाई NDA और INDIA ब्लॉक के बीच सिमटती नजर आ रही है। AIMIM का स्वतंत्र राजनीतिक आधार सीमांचल के कुछ जिलों तक ही सीमित है। 2020 में मिली सफलता के बाद भी पार्टी का जनाधार कमजोर है क्योंकि उसके चार विधायक RJD में चले गए।

दूसरी ओर, RJD और कांग्रेस दोनों ही मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं। तेजस्वी यादव पसमांदा मुसलमानों को साधने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं राहुल गांधी CAA-NRC जैसे मुद्दों पर मुस्लिम समाज को लामबंद कर रहे हैं। AIMIM को डर है कि अगर वह गठबंधन का हिस्सा नहीं बनी तो मुस्लिम वोट सीधा महागठबंधन की तरफ झुक जाएंगे और AIMIM हाशिए पर चली जाएगी।


2020 का अनुभव और वर्तमान रणनीति

हैदराबाद से बाहर ओवैसी ने राजनीति हमेशा किसी न किसी पार्टी की मदद से ही चमकाई है। 2020 में उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा और बसपा के साथ गठबंधन कर 5 सीटें जीती थीं। महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर के साथ मिलकर उन्होंने सफलता पाई। इसलिए इस बार भी वे गठबंधन में एंट्री चाहते हैं ताकि उन पर ‘बीजेपी की बी-टीम’ होने का आरोप कमजोर हो सके।

लेकिन इस बार महागठबंधन खासकर RJD को लगता है कि AIMIM को साथ लेने से मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होगा और हिंदू वोटर एकजुट होकर NDA के साथ जा सकते हैं। यही वजह है कि लालू और तेजस्वी दरवाजा बंद किए हुए हैं।


AIMIM की मजबूरी

अख्तरुल ईमान बार-बार दोहरा रहे हैं कि हम सत्ता की लालसा नहीं रखते, सिर्फ 6 सीट चाहते हैं। पर असलियत यह है कि बिना गठबंधन AIMIM के लिए 2025 का चुनाव बहुत कठिन है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक सीमांचल के बाहर AIMIM का कोई बड़ा आधार नहीं है। राहुल गांधी की ‘वोट अधिकार यात्रा’ के बाद सीमांचल का माहौल भी महागठबंधन के पक्ष में झुक चुका है। ऐसे में AIMIM को लगता है कि अगर गठबंधन से बाहर रहे तो उनका पूरा वोट बैंक खिसक जाएगा।


क्यों परहेज कर रही RJD

आरजेडी और कांग्रेस दोनों ही AIMIM को शामिल कर सियासी खतरा मोल नहीं लेना चाहते। उनका मानना है कि मुस्लिम वोट AIMIM को देने के बजाय महागठबंधन में ही रहेंगे। लेकिन अगर AIMIM को साथ लिया गया तो बीजेपी यह प्रचार करेगी कि विपक्ष कट्टरपंथी ताकतों के साथ है। इससे हिंदू वोट महागठबंधन से दूर जा सकते हैं।

2014 के बाद से भारतीय राजनीति का पैटर्न बदला है। अब बहुसंख्यक वोट को साधना चुनावी सफलता की कुंजी बन गया है। इस फॉर्मूले के चलते बीजेपी लगातार चुनाव जीत रही है। ऐसे में RJD और कांग्रेस AIMIM से दूरी बनाकर ही सुरक्षित खेलना चाहते हैं।


निष्कर्ष

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी इस समय दुविधा में है। एक तरफ वे जानते हैं कि अकेले चुनाव लड़ना नुकसानदेह हो सकता है, दूसरी ओर गठबंधन में उनकी एंट्री की कोई गारंटी नहीं है। AIMIM की बेचैनी की असली वजह यही है कि वे खुद को राजनीतिक हाशिये पर नहीं जाने देना चाहते।

बिहार का यह चुनाव सिर्फ NDA बनाम महागठबंधन की जंग नहीं है, बल्कि AIMIM जैसी छोटी पार्टियों के लिए भी अस्तित्व की लड़ाई है। ओवैसी की बेचैनी इसी बात का सबूत है कि उन्हें अपनी सियासी जमीन खिसकती हुई दिख रही है।

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